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वक्तव्य

उनके निश्चय से नहीं विचलित कर सकता; उलटा वह उसे और दृढ़ अवश्य कर सकता है।

जीती जागती भाषा होने के कारण, हिन्दी का उपचय हो रहा है । उसमें नये नये शब्द, नये नये भाव, नये नये मुहावरे आते जाते हैं । यह कोई अस्वाभाविक या अचम्भे की बात नहीं । सभी सजीव भाषाओं में यह होता है । पर, इस बात की और विशेष ध्यान न देकर, लिङ्ग-निर्देश के विषय में, कभी कभी बड़ा विवाद-नहीं, वितण्डा-वाद तक खड़ा हो जाता है और यदा कदा वह कुत्सा और विकत्थना का भी रूप धारण कर लेता है।

श्याम-शब्द संस्कृत भाषा का है। उसमें तालव्य श् है । वह ज्यों का त्यों हिन्दी में आ गया है, अर्थात् वह सत्सम शब्द है। अब कल्पना कीजिए कि श्याममनोहर नाम के किसी एक लेखक ने, अपने नाम के पूर्वार्ध श्याम में, तालव्य श् के बदले दन्त्य स् लिख दिया । यह देखकर हिन्दी के समालोचक बिगड़ उठे और लगे उसकी खबर लेने । उन्होंने दन्त्य स् का प्रयोग अशुद्ध ठहराया। उनकी यह पकड़ सर्वथा उचित है । और भी यदि दो चार भूले-भटके लेखक इस शब्द में दन्त्य स् का प्रयोग करें तो उनका भी वह प्रयोग अवश्य ही अशुद्ध माना जायगा। परन्तु यदि श्याममनोहर के सैकड़ों अनुयायी उत्पन्न हो जायँ और वे भी, जान बूझकर,तालव्य के स्थान में दन्त्य ही स् लिखने लगें तो क्या हो ? तो क्या वह शब्द तब भी अशुद्ध ही माना जा सकेगा ? यदि माना जाय तो कहना पड़ेगा कि हिन्दी