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साहित्यालाप


कह दे कि वह पाती है तो हिन्दी के वेयाकरण उसका मज़ाक ज़रूर उड़ावें । पर हाथीही का पर्यायवाची शब्द करेगु, संस्कृत में, पुल्लिङ्ग भी है और स्त्री-लिङ्ग भी !

इस निवेदन से मेरा यह मतलब नहीं कि हिन्दी-रचना और देवनागरी लिपि में अनाचार या कामचार से काम लिया जाय । मैं गदर का पक्षपाती नहीं । गदर मचानेवालों की तो कहीं भी गुज़र नहीं। पकड़े जाने पर उन्हें अवश्य ही दण्ड दिया जाय । उनका निग्रह होनाही चाहिए । पर शिष्ट लेखकों के अनुगामी लोग बागी या अपराधी न समझे जायें ।

१४-कविता की भाषा ।

अभी कुछ समय पहले तक जो लोग कविता या पद्यरचना में बोल-चाल की भाषा काम में लाते थे उनकी बेतरह खबर ली जाती थी। वे शाखामृग और लम्बकर्ण आदि उपाधियों से विभूपि त किये जाते थे । इन उपाधिदाताओं की आवाज़ अब बहुत ही विरल और धीमी पड़ गई है । पर अब भी, कभी कभी, उसे सुनने का सौभाग्य प्राप्त हो जाता है । तथापि समय ने दिखा दिया है कि उनकी युक्तियों और विभीषिकाओं में कितना सार था और उनकी दी हुई उन उदारतासूचक उपाधियों के पात्र कौन हैं । अतएव इस विषय में और कुछ कहने सुनने की आवश्यकता नहीं।

मेरा यह वक्तव्य आवश्यकता से अधिक लम्बा हो गया। इससे, सम्भव है, आप सभापति महोदय के विद्वत्तापूर्ण और महत्तामय भाषण सुनने के लिए उतावाले हो रहे होंगे। अत-