१८-आज कल के छायावादी कवि और कविता।
सुकविता यद्यस्ति राज्येन किम् ! भर्तृहरि ।
श्रीयुत रवीन्द्रनाथ ठाकुर की गणना महाकवियों में है।वे विश्वविश्रुत कवि हैं। उनके कविता-ग्रन्थ विदेशों में भी बड़े चाव से पढ़ जाते हैं । कविता-ग्रन्थों ही का नहीं, उनके अन्य ग्रन्थों का भी बड़ा आदर है। उनकी कृतियों के अनुवाद अनेक भाषाओं में हो गये हैं और होते जा रहे हैं। उन्हें साहित्य-क्षेत्र में पदार्पण किये कोई ५० वर्ष हो गये । बहुत कुछ ग्रन्थ-रचना कर चुकने पर उन्होंने एक विशेष प्रकार की कविता की दृष्टि की है । यह सृष्टि उनके अनवरत अभ्यास, अध्ययन और मनाऽभिनिवेश का फल है । अंगरेज़ी में एक शब्द है-( Mystic या Mystical ) पण्डित मथुराप्रसाद मिश्र ने अपने पैभाषिक कोश में, उसका अर्थ लिखा है-गूढार्थ, गुह्य, गुप्त, गोप्य और रहस्य । कुछ लोगों की राय में रवीन्द्रनाथ की यह नये ढङ्ग की कविता इसी 'मिस्टिक' शब्द के अर्थ की द्योतक है। इसे कोई रहस्यमय कहता है, कोई गूढोर्थ-बोधक कहता है, और कोई छायावाद की अनुगामिनी कहता है । छायावाद से लोगों का क्या मतलब है, कुछ समझ में नहीं आता। शायद उनका मतलब है कि किसी कविता के भावों को छाया यदि कहीं अन्यत्र जाकर पड़े तो उसे छायावाद-कविता कहना चाहिए।
कुछ शब्दों में विशेष प्रकार की शक्ति होती है। कभी कभी