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परिषद् के वर्तमान संचालक श्रीवैद्यनाथ पाण्डेयजी का भी मैं अनुगृहीत हूँ, जिन्होंने परिषद् में सदैव मेरी सुविधाओं का ध्यान रखा है। परिषद् के प्रकाशनाधिकारी आदरणीय श्रीअनूपलाल मंडलजी तथा उनके सहायक और मेरे मित्र श्रीहवलदार त्रिपाठी 'सहृदय' के मीठे तकाजे न होते रहते तो पुस्तक की प्रेस-कॉपी प्रस्तुत करने में मैं अभी कितना समय लेता, कह नहीं सकता। परिषद् के प्राचीन हस्तलिखित ग्रंथानुसंधान-विभाग के योग्य शोध-सहायक श्रीरामनारायण शास्त्री ने पुस्तक में समाविष्ट अनेक तालिकाओं के संकलन-लेखन में मेरी सहायता की है। मैं उनका भी कृतज्ञ हूँ। 'साहित्य' के सहकारी सम्पादक, विद्यावृद्ध श्रीरंजन सूरिदेवजी, और उनके सुयोग्य सहयोगी श्रीरामकिशोर ठाकुर ने, वेणीमाधव मुद्रणालय, राँची, के तत्परतापूर्ण सहयोग से, जैसा प्रकाशन-मुद्रण संभव कर दिखाया है, उसकी अच्छाइयों का समस्त श्रेय उनका और दोषों का भागी एकमात्र मैं।
अन्त में, मैं कलाकार-प्रवर श्रीउपेन्द्र महारथी के प्रति भी अपनी कृतज्ञता प्रकट करता हूँ, जिनके द्वारा अंकित आवरण पुस्तक पर है।