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साहित्य का उद्देश्य

कारण कितने ही लोग विवाह से कॉपते हैं, और उनकी रसिकता और कोई मार्ग न पाकर कामोद्दीपक साहित्य पढ़कर ही अपने दिल को तसल्ली दे लेती है। रूसी समाज को जिन लोगो ने देखा है, वे कहते है वि वहाँ की स्त्रियों रंग और पाउडर पर जान नहीं देतीं और न रेशम और लेस के लिए मरती है । उनके सिनेमा घरो के दरवाजो पर अर्ध नग्न पोस्टरो का वह प्रदर्शन नहीं होता, जो अन्य देशों मे नजर आता है। इसका कारण यह है कि वहाँ धन की प्रभुता किसी हद तक जरूर नष्ट हो गई है, और उनकी कला अब धन की गुलामी न करके समाज के परिष्कार मे लगी हुई है । हम ऊपर कह आये है कि आज यथार्थवाद के पर्दे मे बेशर्मी का नंगा नाच हो रहा है । यथार्थवाद के माने ही यह हो गए हैं कि वह समाज और व्यक्ति के नीच से नीच अधम से अधम और पतित से पतित व्यवहारो का पर्दा खोले, मगर क्या यथार्थता अपने क्षेत्र मे समाज और व्यक्ति की पवित्र साधनाओ को नहीं ले सकती ? एक विधवा के पतित जीवन की अपेक्षा क्या उसके सेवामय, तपमय जीवन का चित्रण ज्यादा मगलकारी नहीं है ? क्या साधु प्रकृति मनुष्यो का यथार्थ जीवन हमारे दिलो पर कोई असर नहीं करता ? साहित्य मे असुन्दर का प्रवेश केवल इसलिए होना चाहिए कि सुन्दर को और भी सुन्दर बनाया जा सके। अन्धकार की अपेक्षा प्रकाश ही ससार के लिए ज्यादा कल्याण- कारी सिद्ध हुआ है।