पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१०४

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बारहवां अध्याय ३ दो आवृति की गतियों में स्वर रखते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि प्रथम सोलह मात्राओं के ऊपर ऐसे स्वर नहीं आजायें कि गति समाप्त होती सी प्रतीत होने लगे; बल्कि यह बात दूसरी आवृत्ति के अन्त में होनी चाहिये। इसका उदाहरण हमारी प्रत्येक गति में आपको मिलेगा। उदाहरण के लिये विलम्बित गति रागश्री की प्रथम लाइन में पर समाप्त हो रही है, जबकि पूरी गति की समाप्ति का स्वर षड्ज है। इसी प्रकार सब का अवलोकन कर लीजिये। मध्यलय की गते बनाना- जब इन्हीं गतों को धीमी लय में बजाया जायगा तो यही द्रुत की गर्ने मध्यलय की बन जायेंगी; परन्तु विलम्बित लय की गतों को जल्दी-जल्दी बजाने से, अथवा इन गतों को बहुत धीमी लय में बजाने से, न तो विलम्बित वाली द्रुत की गते बन सकती हैं और न द्रुत वाली विलम्बित का हो काम दे सकती हैं। परन्तु इन द्रुतलय की गतों से मध्यलय की गतों का काम अवश्य लिया जा सकता है। अब इसी आधार से, इन ढांचों पर कुछ गतियाँ देखिये :-- ढांचा नं० १ गौड़ सारङ्ग- ग प म ध प ग रेरे म दा दिर दा रा ग मम धध पप | ग- मरे -सा निसा दा दिर दिर दिर दा- रदार दा रा दा रा X २ 0 ३ मारवा- ग घ रे सासा ग रे | म म | ग रेरे गग मम ग- गरे -रे सा दा दिर दा रा दा रा दा रा! दा दिर दिर दिर दाऽ रदा हर दा X २ ३ पीलू- 2 प ध नि सा ग नि सा | ग मम पप मम | गु- गुनि -नि सा दा दिर दा दा रा दा रा दा दिर दिर दिर, दाऽ रदा डर दा रा X २ ३