पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१२१

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१०० सितार मालिका वृन्दावनी सारंग- नि नि| प मम । रे पप सासा | नि दिर दा सा रे- रेम -म रा दाऽ रदार दा दा रा दिर दा X २ o पीलू- रे । सा निनि | प दिर दा निनि । सा दिर दा सा - भ दारा रा हा रदार X ० O ३ भैरवी-- प मम ग मम म | गु- गए। रदार सारे दिर दा दारा दिर दा दिर दा रा दाइ X ० २ सम्भवतः अब आप इसी आधार से किसी भी राग तथा इच्छित ताल में गति बना सकते हैं। यहां हमने प्रायः गति की एक-एक ही लाइन लिखी है। इसे आप स्थाई समझिये। इससे अगली लाइन जिसे आप तोड़ा या (अन्तरा) कह सकते हैं, स्वयं बना लीजिये। इन गतों को आप सितार, सरोद और जलतरंग तीनों पर बजा सकते हैं। वीणा के लिये यह गते उपयुक्त नहीं हैं। जो वीणा वादक 'दिर' का अभ्यास कर लेंगे उन्हें यह सुन्दर लगेंगी। क्योंकि इनमें 'दिर' और 'दाऽर' का खूब प्रयोग किया गया है। अब आगे आपको यह बतायेगे कि गति के बाद सितार में क्या बजाया जाता है।