पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१२२

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तेरहवाँ अध्याय गति को आड़ी-तिरछी करने की युक्ति गतों को निर्माण करने का ढङ्ग तो आपने सीख लिया। अब यह प्रश्न उत्पन्न होता है कि गति को बजाने के बाद क्या बजायें ? इसके लिये जिस प्रकार आपने गतियों के ढांचे याद किये थे, उसी प्रकार कुछ मिजराबें भी कण्ठ करन पड़ेंगी। यद्यपि यह मिजराबें बड़ी सरल होंगी; परन्तु इनके उठने व मिलने के स्थानों को ध्यान में रखना जरूरी है। गति बजाने के बाद, उसी लय कुछ टुकड़े, इस ढंग से बजाये जाते हैं कि लय में तो कुछ भी गड़बड़ी उत्पन्न नहीं होने पाती; परन्तु सुनने वालों को और तबले पर सङ्गत करने वालों को झंझट उत्पन्न हो जाता है। इसे ही सैन बंशीय सितारिये गति की 'सीधी-बाड़ी' कहते हैं। चूंकि इसे बजाते समय टुकड़ों के उठने और मिलने का ध्यान रखना पड़ता है अतः आधुनिक काल में यह "सीधी-बाड़ी" प्रायः लुप्त सी हो चली हैं। यदि आपने किसी भी एक गति की 'सीधी-बाड़ी' कएठ करली तो उसी आधार से आप उसे सारी गतों में बजा जायेंगे। आड़ी तिरछी का एक क्रम- उदाहरण के लिये हम एक गति मसीतखानी लेते हैं। उसकी 'सीधी आड़ी' बनाने की युक्ति यही है कि मिजराबों के बोलों को इस प्रकार बदल देना है कि स्वर तो वही रहे परन्तु बोल बदल जाये। जैसे एक गति के बोलः- 'दिड दा दिड दा ड़ा दा दा रा' १ २ ३ ६ s है। आपने जिन स्वरों पर यह बोल बजाये हैं उन्हीं स्वरों पर बजाय इन बोलों के कुछ और बोल बजा दीजिये। अर्थात् पहिले आप ६-७-८ बोल की मिजराब बजा दीजिये, फिर उसमें १-२-३-४ और ५ मात्रा के बोलों को जोड़ कर आठ मात्रा पूरी कर दीजिये। इस प्रकार यह बोल 'दा दा रा दिड दा दिड दा रा' हो जायेंगे । यही आपकी "सीधी-आड़ी" होगई। यहां यह आवश्यक नहीं है कि आप इन मिजराबों को इसी बताए हुये क्रम से बजायें। जैसी आपकी इच्छा हो बजा सकते हैं।