पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१२८

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तेरहवाँ अध्याय प्रकृति के अनुसार रख सकते हैं । चूंकि पहिली चार मात्रा (जिन्हें दो बार बजाना है) सम से ही आगे की हैं अतः इन पर वही स्वर अच्छे लगेंगे जो नि (सम वाले स्वर) के समीप के हों । फिर, अगली जिन तीन मात्राओं को दो बार बजाना है, उनके बाद में गति की बारहवीं पकड़नी है। इसलिये इन तीन मात्राओं के स्वर भी ऐसे होने चाहिये कि इन तीनों स्वरों का प्रारम्भ तो पहिली चार मात्रात्रों से संबन्धित हो जाय और अंत में बारहवीं मात्रा पकड़ने में सरलता के साथ-साथ स्वाभाविकता भी रहे । देखिये गति इस प्रकार है: गर्म ग सासा निधध निसा नि नि नि धुधु बुध नि रे । सा सा, सा ३ X २ ० जब कि आड़ी-तिरछी नं०८ इस प्रकार है:-- दा । दिर दा रा दा दिड दा दिड दा दिड दा रा दा २ ३ यहां नं० १-२ और ३ की मिजराबों को दो-दो बार कह कर बारहवीं मात्रा से गति में मिलना है। जैसे- उदाहरण गति को आड़ी-तिरछी का- नि, ध म ध ! नि, धुधु म ध | नि, धुनि रे मा, | धनि रे मा, गर्म ३ x ग सासा निधध निसा | नि, गर्म ग सामा निधध लिसा नि, गर्म ग सासा निषध निसा X ३ बारहवीं से गति में या मिले। इस प्रकार प्रत्येक एक आवृति की गति में वही छोटी मी आड़ी तिरको काम में ली जा सकती है। अब एक उशाहरण दो श्रावृत्तियों की गतों के लिये भी देते हैं। अब की बार स्वर ज्यों के त्यों वही रक्खेंगे जो गति के बोलों में हैं। इसके लिये आड़ी-तिरछी का उदाहरण नं. १० लेंगे और दो आवृत्ति की, दसवें अध्याय में दी हुई श्री राग की गति से गुणक्री तक की कोई भी गति ले लेंगे। तो लीजिये श्री राग की गति को लेते हैं। निनि । ग ररे प पसां सां सां निनि | सा रे सां नि ध प म, धुध २ ३ X