पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१३४

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चौदहवां अध्याय गमक के साथ अवरोही में मिली ताने बनाना- कभी-कभी गमक के साथ अभ्यास करते समय रेग गग गरे सानि, गम मम मग रेसा, मप पप पम गरे, पध धध धप मग आदि को अनेक प्रकार से लिया जाता है। गमक की तानों में, जिस स्वर की गमक निकालनी होती है, उसके पहिले स्वर पर तार को खींचकर, भीड द्वारा पुनः उसी स्वर पर पहुँच कर गमक निकाली जाती है। जब गा स्वर की गमक निकालनी हो तो 'रे' के परदे से ही निकाली जायगी। इसी तरह 'म' स्वर की गमक गान्धार पर तार खींच कर निकाली जायेगी। इसी क्रम से सारी गमक समझनी चाहिये। तानों के ऐसे अनेक प्रकारों में से एक प्रकार की तान का, सितार वादक विशेष रूप से प्रयोग करते हैं । वह है:-रेग गग, रेग गग, रेग गग, मग रेसा । इसमें केवल 'सा' स्वर जोड़कर शेष स्वर 'रे' के परदे पर ही वजेंगे । यह फिक्रा इसी प्रकार प्रत्येक स्वर पर बजेगा। ज़मज़म की तानें बनाना- ज़मज़मे की तानों का प्रयोग सितार में बहुतायत से होता है। इसको बजाने के लिये एक स्वर पर मिजराब पड़तो है और तुरन्त मध्यमा से दूसरा स्वर दबाकर आंस से निकाला जाता है । ( देखिये जमजमा बजाने की युक्ति पांचवें अध्याय में) जैसे- निसा निसा रेसा में दोनों नि तथा रे पर मिजराबें पड़ेंगी और तीनों 'सां' जमजमे से निकलेंगे। यदि इस तान में जिस स्वर पर मिजराब का प्रहार हो, उसे मोटे टाइप में लिख दें, और जिस पर जमजमा लगे उसे छोटे टाइप में रख दें तो इसका रूप यह होगा:- निसा निसा रेसा, सारे सारे गरे, रेग रेग मग, आदि । यहां रेसा, गरे, मग, आदि उसी प्रकार बजेंगे जैसे मुर्की बजाते समय बजाये जाते हैं (देखो अध्याय पञ्चम में मुर्की बजाना ) आप भी इस प्रकार की तानें बना सकते हैं। सुमेरुखंडी तानें बनाना- इस प्रकार की तानों में जिस स्वर पर मिजराब का प्रहार होगा उस स्वर का नाद तो बड़ा होगा और जो स्वर जमजमे से बजेगा उसका नाद छोटा होगा। ऐसे स्वरों की तानों में, जब कि एक ही लय में बजते हुए स्वरों में से किसी का नाद छोटा और किसी स्वर का नाद बड़ा हो जाये तो इसे कोई-कोई मीरखंडी तान भी कहते हैं। मेरे विचार से यह शब्द सुमेरुखंडी है जो बिगड़ कर मीरखंडी बन गया है।