पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१३७

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पन्द्रहवां अध्याय सरल तीये बनाने की विधि तीये का महत्त्व- जिस प्रकार उर्दू की कविता में और के आखिरी शब्द समान होते हैं और श्रोतागण पंक्ति समाप्त होने से पूर्व ही पंक्ति को तुकबन्दी के आधार पर बोल उठते हैं; ठीक उसी प्रकार संगीत में तीये हैं। उदाहरण के लिये एक शैर में पहिलो पंक्ति है 'बैठे बिठाये मुफ्त में सड़मे उठाय कौन' और दूसरी लाइन है, 'दिल देके अपनी जान का दुश्मन बनाय कौन' । यहां जो लोग इसके भाव को लेते हुए सुन रहे हैं वह तो इस कविता का आनन्द लेते ही हैं, परन्तु जो लोग उर्दू कम समझते हैं वह भी अन्त में तुक बन्दी के लिहाज से 'कौन' शब्द तो कह ही देते हैं। इसी प्रकार आप भी जब तीया लेकर सम पर आते हैं, तो समझदार लोग उसका अनेक प्रकार से आनन्द लेते ही हैं। परन्तु अन्तिम धा पर ताली देकर, संगीत का कम ज्ञान रखने वाले लोग भी, अपने को संगीत का ज्ञाता सिद्ध कर देते हैं। जितना विद्वानों को आनन्द देता है, उससे कुछ कम अन्य श्रोताओं को । जब महफ़िल में रंग जमता दिखाई न देता हो तो सितार के तीये और झाले ही वह वस्तुएँ हैं जो रंग जमाने में सहायक होती हैं। अत: तीया तोया यदि सदैव एक जैसा ही आता रहे तो उसका आनन्द कम हो जाता है। तीये का उठान ऐसे स्थान से होना चाहिये कि श्रोता सरलता से पकड़ ही न सकें। साथ में यदि तबला वादक भी टुकड़े लगाने लगे, (जबकि आप अपने तीये के फेर में पड़े हैं ) तब भी आपका तीया ठीक आना चाहिये, तभी आप कलाकार समझे जायेंगे। इसे सरल करने का ढंग विद्वानों ने निकाल लिया है। यदि हम आप से कहें कि आप जिस प्रकार अब तक मिजराबों के बोल के आधार से गति, तोड़े और तानें बनाने का क्रम सीख गये, उसी प्रकार यदि आप दिमारा में तो तबले के बोल बोलें और उन्हीं के अनुसार हाथ की मिजराब चलायें तो आपके गलत होने का कोई भय नहीं रहेगा। क्योंकि आप वास्तव में तो तबले के बोल ही बजा रहे हैं; परन्तु वह तबले पर न बजकर सितार पर बजाये जा रहे हैं, इसलिये सुनने वालों को तो सितार ही सुनाई दे रहा है। हो सकता है कि आपने किसी विद्वान के बारे में यह सुना हो कि अमुक विद्वान तो सितार में केवल तबला या नाच ही बजाते हैं। उनका अभिप्राय यही होता है कि जब वह तीये आदि लेते हैं तो उनके दिमाग में तबला या नाच ही चलता रहता है। तो आइये, आप भी सितार में तबला और नाच बजाने की युक्ति देखिये कि यह कार्य कैसे किया जाता है।