पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१४६

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सोलहवां अध्याय १२५ ३ -नधिध् तगि-न्न विधिध् धात्रक वितगि -नधि तगि-न विधि धा इस प्रकार के जो एक-एक आवृत्ति के तीये हैं वह सम से उठकर, एक ही तीये को अलग-अलग स्वरों पर, अलग-अलग मुखड़ों के द्वारा, कई बार बजाया जा सकता है । अभ्यास हो जाने पर जब आप अठगुन की लय साध लें, तो दिमाग में तो अठगुन की लय बोलते रहें और हाथ को चौगुन की लय में चलाते रहें। इन परनों को बजाय सोलह मात्रा के आठ मात्राओं में भी बजाया जा सकता है । इन्हीं तीयों को दूसरी प्रकार बजाना-- यदि बजाय सम से उठने के, दो मात्रा बाद में उठे और इन्हें आठ मात्रा में पूरा बजादें तो आपके यही तीये धा सहित ग्यारवी मात्रा पर पूरे होंगे। इस प्रकार तीया समाप्त करने के बाद आप गति में भी बारहवीं मात्रा से मिल सकते हैं। देखिये एक परन को तालबद्ध करके दिखाते हैं: दिड दा दिड दा डा दा दा X २ धिधिधिधिध् तृकधिधिग-न्न कततकततकत कतकतगदिगिन कतगदिगिनकत ७ ४ धा,कतगदि गिनकतधा, कतगदिगिनकत धा, यहां से फिर गति की बारहवीं शुरू 5 ६ करदी जायगी। इस प्रकार ग्यारहवीं मात्रा पर तीये को समाप्त करने के लिये आप इन्हें दूनी लय में, दूसरी मात्रा बजाने के बाद भी काम में ला सकते हैं। एक ही आवृति में एक सरल टुकड़ा और देखिये। यह नाच का टुकड़ा है; इसी प्रकार के टुकड़ों को सितार में बजाने पर 'नाच बजाना' कहते हैं। तीया नं. ४ X थंगा तक डुंगा | तिग्धे तक्का o x दिगदिग दिगदिग ३ दिगदिग थेई तत्तत् थेईतत् तत्थेई तत्तत् थेई LA इन तीयों को चाहे जिन स्वरों पर बजाते रहिये, परन्तु तीये के जो भी स्वर एक बार बज जायें, तीनों बार वही रहने चाहिये, तभी तीया सार्थक तथा सुन्दर प्रतीत होगा।