पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१६२

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सत्रहवाँ अध्याय कुछ अन्य आवश्यक बातें महफ़िल और सितार वादन :- महफिल में मितार वादन करने से पहिले, जिस राग को बजाने की इच्छा हो उसी हिसाब से परदे खिसका कर सैट कर लेने चाहिये । फिर मुख्य तारों को मिला कर तर मिला लें। सर्व प्रथम छठे अध्याय के अनुसार भराव, अलाप की लय, अलाप का सम, अलाप के पांच अङ्ग के आधार से अलाप बजाकर मसीतखानी अथवा सैनवंशीय गति बजानी चाहिये । स्थाई, अन्तरा बजाने के बाद गति को आड़ी-तिरछी करें। इसके उपरान्त पहिले छोटी और बाद को बड़ी-बड़ी अलंकारिक और चौदहवें अध्याय के अनुसार सितार की विशेष तानें और अन्त में गमक को ताने बजावें। जब ताने बज चुकें तब मिजराब के बोलों से तानें बजनी चाहिये । इन तानों के बाद पन्द्रहवें अध्याय के अनुसार, पहिले छोटे-छोटे तीये फिर सोलहवें अध्याय के अनुसार कुछ कठिन लय के तीये, साधारण फरमाइशी और कमाली चक्रदार बजा सकते हैं। फिर अन्त में झाले बजान का नम्बर आ जायगा । झाले में लयकारी दिखाने के बाद, उसी राग को द्रुत गति और बजानी चाहिये । द्रुत गति में आठवें अध्याय के अनुसार तानें, पन्द्रहवें अध्याय के अनुसार तीये और अन्त में झाला वजना चाहिये । सबसे अन्त में द्रुतलय की गति भी तीये से ही समाप्त करने की चेष्टा करें। कुछ विद्वान विलंबित लय में चक्रवार तक बजाने के बाद, तुरन्त द्रुत की गति प्रारम्भ कर देते हैं । इस प्रकार द्रुत लय में ही झाले का काम दिखाते हैं। आपको जो ढंग अच्छा लगे उसे अपना सकते हैं । महफ़िल के लिये कुछ उस्तादी गा वनाना- कुछ विद्वान महफ़िल के लिये ऐसी गतें बना लेते हैं कि उनका सम स्पष्ट मालूम न हो। इससे ताल देने वालों को अड़चन पैदा हो जाती है। वास्तव में शास्त्रोक्त सम का स्पष्ट न आना शास्त्रीय नियम के प्रतिकूल है, परन्तु ऐसी गतें भी पाई जाती हैं, अत: उनका उल्लेख करना आवश्यक है। ऐसी गति बनाने के लिये हम एक सैनवंशीय उदाहरण दो श्रावृत्तियों के ढांचे पर (ढांचा देखिये १० वें अध्याय में, प्रारम्भ वाला) बनाकर दिखाते हैं। इस गति में हम सम से पहिली चार मात्रा पर, सम वालो मात्रा पर और उससे अगली मात्रा पर, अर्थात् १६वीं