पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१६३

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सितार मालिका पहिली और दूसरी इन मात्राओं पर बजाय एक-एक स्वर के दो-दो स्वर कर देंगे, फिर बजाते समय सम वाले स्वर के नाद को बड़ा न करके समान ही रखेंगे, तभी आप देखेंगे कि बिना बतलाये हुए सम पकड़ना कठिन हो जायगा । देखिये यह गति जौनपुरी में है:- मम ३ X २ o प सांसां ध पधु मप गुम रे मम प, पप, रेंग रेंगे रे सां सां र सां निनि ध पनि निनि सां सां | रें निनि ध प ग गसा रे, इसी का तोड़ा भी देखियेः- मम प धुध नि सां नि सां रें रें | सां निनि ध प म म प धध प मम मम गुसा गंगं गं गं रे रे सां सारे निसां धनिसार सा, मम प सांसां ध, पध इसी प्रकार आप किसी भी राग की रचना इस ढंग से सम को छिपाकर कर सकते हैं । इसी ढंग से द्रुत की गतियों में भी सम को छिपाने का यही उत्तम उपाय है कि सम के स्थान पर, दूसरी मात्रा को कम से कम एक मात्रा से बढ़ा दीजिये । बजाते समय दूसरी मात्रा पर नाद भी बड़ा कर दीजिये । उदाहरण के लिये एक गति भैरवी में देखिये, इसे द्रुतलय में बोलते रहिये और ताल लगाते रहिये तो आप अनुभव करेंगे कि हम स्वयं ही ताल में विचलित हो सकते हैं । बोलते समय यह मत भूलिये कि सम से अगली मात्रा पर नाद बड़ा करना है। देखियेः- ३ ध ध नि प प म प X गम २ म प ग ग कभी-कभी सम स्थान को सोलहवीं मात्रा पर, उसी स्वर के नाद को कुछ बड़ा करके विचलित किया जाता है । इस प्रकार की एक गति यमन में देखिये:-