पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१६९

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सितार मालिका है और एक ही राग को अधिक समय तक बजाने में सहायता मिलती है। इसी आधार से आप चाहे जिस राग में एक राग को बजाते हुए, दूसरे राग का भ्रम उत्पन्न कर सकते हैं। अाधुनिक काल में मूर्च्छनाओं का यही उपयोग है। सितार में ठुमरी अंग और उसकी विशेषता :- सितार में ठुमरी तभी बजाई जा सकती है, जब आप रागों के सुन्दर सुन्दर मिश्रण करने में कुशल हों । कारण, ठुमरी बजाने में दो बातों का विशेष ध्यान रखा जाता है । (१) उसमें कल्पना द्वारा ऐसे सुन्दर स्वरसमुदायों का मिश्रण होना चाहिये कि वह श्रोताओं की कल्पना के बाहर हों। जो भी स्वरसमुदाय श्राप ठुमरी में लें वह एकदम विचित्र और नवीन होने चाहिये । परन्तु इतने विचित्र और नवीन भी न हो जायें कि उनका मिठास और सुन्दरता नष्ट होकर केवल विचित्रता ही शेष रह जाय । (२) ठुमरी में लम्बी-लम्बी ताने नहीं ली जाती । इसमें एक-एक, दो-दो मात्राओं की तानें जिन्हें क्रन्तन, जमजमा, मुर्की, गिटकिड़ी, मींड और करण आदि के आधार पर बनाया जाता है, प्रयोग की जाती हैं। अतएव ठुमरी बजाने के लिये इस पुस्तक के पंचम अध्याय का विशेष अभ्यास करना चाहिये । साथ-साथ ठुमरी वादक को ताल-ज्ञान भी विशेष रूप से अच्छा होना आवश्यक है। नित्य किस बात का अभ्यास किया जाये :- हाथ में मिठास उत्पन्न करने के लिये क्रम से सारङ्गी, गिटार और वायलिन टाइप की मींड़ों का (छठा अध्याय ) अभ्यास नित्य होना चाहिये । सारङ्गो टाइप की भीड़ पर विशेष बल देना चाहिये । फिर, चौदहवें अध्याय के आधार पर अलंकारिक तानें, बाएं हाथ को तैयार करने वाली तानें, गमक के साथ अवरोही मिली तानें, जमजमे की तानें, सुमेरु खंडी ताने, गिटकिड़ी की तानें, लाग-डाट की तानें, मिजराबों के बोलों के आधार से ताने आदि का अभ्यास होना जरूरी है। जिस प्रकार की तानों का अभ्यास किया जाय, उसे कम से कम दो-तीन घंटे नित्य एक मास तक, उस एक ही अभ्यास को चलाना चाहिये । उदाहरण के लिये आप गमक की तानों का अभ्यास करना चाहते हैं तो कोई भी एक क्रम पकड़ कर, उसी को लगभग एक मास तक नित्य दो-तीन घंटे बजा डालिये। साथ में तीये और झालों का भी अभ्यास इसी प्रकार करना चाहिये । चक्रदारों में विशेष रूप से कमाली चक्रदारों का अभ्यास तो कम से कम एक घंटा नित्य होना ही चाहिये । एक दिन में दो-तीन घंटे तक केवल एक ही चक्रदार बजनी चाहिये । पैर से प्रत्येक मात्रा पर ताल देने का अभ्यास भी नित्य करते रहना चाहिये। इस पुस्तक से कैसे लाभ उठायें : चूंकि प्रस्तुत पुस्तक में लेखक ने अपनी बुद्धि के अनुसार सितार के सब अङ्गों का संक्षिप्त में सूत्र रूप से वर्णन किया है । अतः हो सकता है कि पाठक इसके १३ वें अध्याय