पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१७

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सितार मालिका दिखाया। फल स्वरूप अच्छे सितारियों को ध्रुपद और ख्याल दोनों गायकियों का पूर्ण ज्ञान हो गया और वह वीणाकारों की दृष्टि में खटकने भी लगे। इसका जीता जागता उदाहरण आज ( १६५८ ) में भारत के सर्व श्रेष्ठ सितार वादक, पं० रविशंकर जी हैं । मेरे विचार से यदि आज भारत में कोई भी ऐसा वाद्य है जो कि ध्रुपद और ख्याल गायकी का पूर्ण ज्ञान प्राप्त करा सके, तो वह सितार ही है । सितार में यह सब होते हुए भी एक विशेषता बड़ी विचित्र है कि यह वाद्य प्रारम्भ में बिल्कुल सरल प्रतीत होता है। परन्तु यदि आप इसे लगातार बीस वर्ष भी बजा लेंगे तो ( यह माना कि सुनने वालों को अानन्द अवश्य आयेगा, परन्तु ) आपको यही भान होगा कि इस वाद्य को जितना अधिक बजाया गया, यह उतना ही अधिक कठिन होता गया है । अतः सितार वादक इस पर जितना अधिक परिश्रम करता है उतना ही उसका अहंकार नष्ट होता जाता है। इस प्रकार इस वाद्य के वादक को अहंकार छू भी नहीं पाता। यही इस वाद्य की सबसे बड़ी विशेषता है। सितार के अंग-- 'तारगहन H नि म..... म मिज़राब •सा सरज सरज 'पचम -फ्यम शिकार खरल चिनारि पचम तिनली लंगोट