पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१७०

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सत्रहवां अध्याय १४६ के आगे के अध्यायों में रुचि रखते हुए भी सफलता पूर्वक उनके अनुसार न चल सकें। ऐसी परिस्थितियों में, पहिले एक बार साधारण दृष्टि से समस्त पुस्तक को पढ़ जायें तो आप यह समझ जायेंगे कि हमें किस अध्याय का विशेष अध्ययन करना है । जिस अध्याय का आप अभ्यास करना चाहें, उसे पहिले कई बार पढ़िये । जब वह भली प्रकार आजाय तभी उस पर अभ्यास करना चाहिये। समझ जो विद्यार्थी प्रारम्भ से ही सितार बजाना सीख रहे हों, उन्हें सबसे पहिले नवें अध्याय को पढ़ कर, जिस राग की गति याद करना चाहें, उसका अभ्यास करना चाहिये। नवें अध्याय से पहिले तृतीय और चतुर्थ को भी ध्यान से पढ़ लेना आवश्यक है। जब गति याद हो जाये तो तेरहवें अध्याय के अनुसार उसकी आड़ी-तिरछी याद करनी चाहिये । चौदहवें अध्याय तक भली प्रकार अभ्यास हो जाने के बाद ही पन्द्रहवें और सोलहवें अध्याय पर अभ्यास करना चाहिये । इसके उपरान्त द्रुत की गतों पर, उसके बाद पञ्चम अध्याय पर और सबसे अन्त में छठे अध्याय पर अभ्यास करना चाहिये। इस पुस्तक से कैसे सिखायें ? सर्व प्रथम विद्यार्थी को मसीत खानी गतों के ढांचे समझो कर गते सिखानी चाहिये । जब गति ठीक प्रकार बज जाये तब तेरहवें अध्याय पर अभ्यास करा कर, एक दम पन्द्रहवें अध्याय में दिये हुए तीयों पर अभ्यास कराना चाहिये। जैसे-जैसे विद्यार्थी का अभ्यास बढ़ता जाये उसे अलाप की ओर आकर्षित करना चाहिये । अन्त में हाथ तैयार हो जाने पर द्रुतलय का काम सिखाना चाहिये ।