पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१७६

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१६ वाँ अध्याय उस्तादों की कुछ गुप्त बातें १--प्रारम्भ में अभ्यास करते समय मिज़राब का पूरी ताकत से तार पर प्रहार करें, मिठास लाने की बिल्कुल चेष्टा न करें। बाद में अभ्यास परिपक्व होने पर वही प्रहार अनेक प्रकार की मिठास उत्पन्न करने में समर्थ होंगे। २-प्रत्येक अलंकार का अभ्यास तबला के साथ करें तो अच्छा है। इससे लयकारी में आपका मस्तिष्क खुल जायगा और फिर किसी भी तबला वादक के साथ बैठकर बजाने में आपको संकोच नहीं होगा। ३-जितनी ताकत से 'दा' निकले उतनी हो ताकत से 'रा' निकलना चाहिए। ऐसा न हो कि इनमें से कोई बोल कमजोर या तेज़ हो । इस अभ्यास की परीक्षा के लिए किसी सितार वादक मित्र अथवा गुरु से श्राप सहायता ले सकते हैं। उनको पीठ फेर कर बैठ जाने के लिए कहिए तत्पश्चात आप दा या रा दोनों में से कोई एक बोल बजाइये और उसके तुरन्त बाद दूसरा बोल । यदि आपके मित्र ठीक-ठीक पहचान कर बता देते हैं कि आपने अमुक बोल बजाये, तव समझिये आपका अभ्यास ठीक नहीं है और यदि वे कहें कि बोल पहचान में नहीं आते तो समझिये कि अभ्यास ठीक चल रहा है। ४-सीधे हाथ की कनिष्ठा अँगुली का नाखून आप चाहें तो बढ़ा सकते हैं और महफ़िल में सितार शुरू करने से पूर्व उस नाखून से तरब के तार क्रमशः छेड़ कर श्रोताओं को प्रारम्भ में ही आत्मविभोर कर सकते हैं जैसा कि पं० रविशंकर जी आदि करते हैं। ५-द्रुतलय के भावावेश में श्रोता भी ठीक आपकी जैसी अवस्था में होते हैं, इस बात को न भूलें, अत: वहां तालियाँ लेना चाहें तो बजाते-बजाते किसी भी सम पर सीधे पैर को मंच पर जोर से मार दें और हँस दें। लेकिन ऐसा एक-दो बार ही करना चाहिए अन्यथा महत्व जाता रहता है। किस स्थल पर यह प्रयोग किया जाय, यह आपकी उसी समय की तुरन्त सूझ पर निर्भर करता है। कोई-कोई कलाकार सम पर हाथ उठाकर भी तालियाँ लेते हैं जैसा कि चित्र नं० स में दिखाया गया है । ६-अत्यधिक विलम्बित लय में गत बजाते समय ध्यान रखें कि कोई भी स्थल ऐसा न आने पावे जहाँ सितार की आवाज़ बन्द हो जाय, क्योंकि अच्छी जवारी खुली होने पर भी नाद के प्रगटीकरण और अस्त होने की एक सीमा रहती है । अतः नाद के अस्त होने का आभास पाते ही उस विशेष स्थल को आप किसी कृन्तन या मीड़ से भर कर तुरन्त आगे का बोल पकड़ सकते हैं जैसे-धसांनिरसांनिसां निध पप म साग दा दा दिर दा राsx