पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१७७

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सितार मालिका ७-हर छः मास के बाद मिज़राब तथा हर दो मास के बाद सितार के बाज का तार बदल देना चाहिये क्योंकि उनमें हल्के-हल्के गड्ढे पड़ जाते हैं। अधिक रियाज बढ़ने पर हर १५ वें दिन तार तथा तीन मास बाद मिज़राब बदल लेने चाहिये । तार तथा मिजराब की घिसावट, देखन से पता लग जाती है। बाज का तार तभी टूटता है जब उसमें गडढे पड़ जाते हैं। तार के नीचे की तरफ अँगुली फिराकर आप उन गड्ढों का अनुभव कर सकते हैं। ८-एक छोटो डिब्बी में रुई रखकर उसमें गोले का तेल डाल लें। महफ़िल में बजाते समय उस डिब्बी को अपनी बांई ओर रखलें और अँगुलियों के संचालन में जैसे ही रूखापन का अनुभव हो, तुरन्त बाएँ हाथ की तर्जनी तथा मध्यमा अँगुलियों के सिरों को रुई से स्पर्श करलें ताकि उन पर तेल लग जाय। फिर आपका संचालन एकदम तीव्रता से होने लगेगा। बहुत से व्यक्ति अँगुलियों को सिर के बालों पर फेरकर भी तेल लगा लेते हैं। ६-गर्मी के दिनों में रियाज़ करते समय अथवा कहीं बजाते समय हाथों से काफी पसीना निकलता है और सीधा हाथ तूं बे पर रक्खा रहने के कारण वहाँ की पालिश बिल्कुल मारी जाती है। अतः सीधे हाथ के नीचे तूचे के ऊपर एक छोटी स्वच्छ तौलिया या बड़ा रूमाल लगा लेना चाहिए। देखिये चित्र नं० ह १०-किसी महफ़िल में बजाने से ४ दिन पूर्व केवल बाज और चिकारी के तार को बदल लेना चाहिए क्योंकि नए तार पड़ने से कार्यक्रम के बीच में तार टूटने की आशंका नहीं रहती और आवाज भी अच्छी होती है । चार दिन पूर्व इसलिए बदलने चाहिए क्योंकि उन पर अभ्यास होने से अँगुलियाँ अपना स्थान पूर्ववत् नियुक्त कर लेती हैं। ११-अँगुलियों में तार की घिसावट से जो गड्ढे पड़ जाते हैं वे ५-६ माह के बाद धीरे-धीरे अपना स्थान स्वाभाविक रूप से बदलने लगते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कि नाखून अपनी गति से बढ़ते हैं। किसी-किसी व्यक्ति के गड्ढे १ वर्ष बाद भी स्थान बदलते हैं अतः ऐसे समय घबराना नहीं चाहिए, बल्कि उन पुराने गड्ढों का मोह छोड़कर तार को नए गड्ढे बनाने की छूट दे देनी चाहिए। कुछ दिन में नए गड्ढे पुरानों से भी बढ़िया बन जायेगे। यद्यपि इस स्थिति में रियाज कम होता है और वह भी इच्छानुसार नहीं क्योंकि नए गड्ढे दर्द करते हैं। जो व्यक्ति ऐसे समय पुराने गड्ढों के मोह में रहते हैं उन्हें आगे चलकर और भी अफसोस रहता है क्योंकि वे अस्वाभाविक रूप से तार को पुराने गड्ढों में सटाकर बजाते रहते हैं। इससे कभी-कभी तार अँगुली से रपट जाता है अथवा द्रुतगत में सपाट तान बजाते समय रपट कर नाखून के अन्दर फँस जाता है अथवा गड्ढों को छोड़ दूसरे स्थान पर खिसक जाता है, उस समय नई खाल पर पूर्वाभ्यास न होने के कारण एकदम दर्द होने लगता है। ऐसी स्थिति में कोई लम्बी तान या चक्रदार तिहाई चल रही हो तो बड़ी मुश्किल अटक जाती है क्योंकि अक्सर ऐसे ही समय तार धोखा देता है। १२-अक्सर ऐसा देखा जाता है कि महफ़िल में सितारवादक तार मिलाने में इतना समय लगाते हैं कि श्रोता ऊबने लगते हैं । अतः सितार वादक को चाहिए कि प्रदर्शन