पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१८०

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उन्नीसवाँ अध्याय से पूर्व किसी अलग कमरे में बैठकर शान्ति से सब तारों को मिलाले और फिर मंच पर जाकर एक बार उन तारों की परीक्षा करले। जो तार उतर गये हों उन्हें फिर से ठीक करले । इस प्रकार मंच पर बहुत कम समय नष्ट करना पड़ेगा। १३-अपने कार्यक्रम से पूर्व का कार्यक्रम सितार वादक को यथा सम्भव नहीं सुनना चाहिए अन्यथा उसकी मनःस्थिति सितारवादन में ठीक नहीं रहेगी। पहले सुने हुए अन्य गायक या वादक के राग का असर काफी देर तक रहेगा अतः सुनना ही हो तो १०-५ मिनट कार्यक्रम सुनकर उठ जाना चाहिए और कहीं एकान्त में जाकर टहलना चाहिए ताकि मन अपने कार्यक्रम के लिए स्वस्थ हो जाय । १४-बजाते समय अगरबत्ती लगाली जाय तो वातावरण मन के एकदम अनुकूल बन जाता है। साथ ही एक इत्र लगा हुआ रूमाल भी वादक की जेब में पड़ा रहना चाहिए । वादन के समय ३-४ बार उसकी सुगन्ध का आनन्द लेकर मन को प्रफुल्लित किया जा सकता है। १५-अक्सर ऐसा देखा जाता है कि जो लोग संगीत को मनोरंजन की वस्तु समझते हैं वे कलाकार के साथ एक पेशेवर नट की भाँति बर्ताव करते हैं। कभी-कभी ऐसे लोग वादक को जमीन पर बैठा देते हैं और श्रोताओं को उसके चारों ओर कुर्सियों पर स्थान देते हैं। यह कलाकार का अपमान नहीं वरन् सरस्वती का अपमान होता है अतः वादक को चाहिए कि ऐसे प्रबन्धकों को शान्तिपूर्वक कोमलता से समझाकर किसी बड़ी चौकी या तख्त का प्रबन्ध करा लेना चाहिए तब उस पर बैठकर वाइन करना चाहिए। १६-वादन के समय एक या दो तानपूरा वादक अपने पीछे बैठाने चाहिए। इससे जनता पर कृत्रिम प्रभाव तो पड़ता ही है, वादक को स्वयं भी स्वरों की गूंज के महल में विचरण करके अद्वितोय आनन्द प्राप्त होता है। रसज्ञ श्रोता भी उससे विभोर होते हैं। चारों ओर स्वर और सुगन्ध का वातावरण ब्रह्मानन्द की उपलब्धि कराता है। १७ जुगलबन्दी में अर्थात् किसी सरोद वादक या अन्य वाद्य वादक के साथ सम्मिलित कार्यक्रम होने पर सितार वादक को बहुत ध्यान रखना चाहिए। उस समय प्रति- द्वन्दिता की भावना न होकर एक दूसरे की कला के सौन्दर्य को प्रगट करने की भावना रहनो चाहिये । जुगलबन्दी एक बड़ा ही अद्भुत भावनाओं का संसार है। वहाँ कलाकार अपना व्यक्तित्व भूल कर कला की अतुल गहराइयों में प्रविष्ट हो जाता है। उस समय कलाकार एक दूसरे से वाद्यों द्वारा बात-चीत करते हैं अर्थात अपनी-अपनी भावनाओं को प्रदर्शित करके सत्त्व का आनन्द लेते हैं, ठीक वैसे ही जैसे कोई युवती अपने प्रियतम से वाणी द्वारा कुछ न कहकर मूक चेष्टाओं द्वारा अपना प्रेम प्रदर्शित करती है। वाणी तो अवरुद्ध हो जाती है, केवल आनन्द से परिपूर्ण एक हृदय रह जाता है।