पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१८३

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१६० सितार मालिका २१-सितार की खोली रुई की बनवानी चाहिये। उसी से सितार की ठीक रक्षा होती है तथा लकड़ो पर मौसम का प्रभाव अधिक नहीं होता। २२-जहाँ तक हो सके किसी अन्य वादक को अपना सितार बजाने के लिये नहीं देना चाहिये । जिस प्रकार होल्डर का निब दूसरे के हाथ से चलने पर खराब हो जाता है, उसी प्रकार वाद्य में भी सूक्ष्म परिवर्तन आ जाता है जो कि दिखाई नहीं देता, केवल अनुभव किया जा सकता है। २३-तरब के तारों के नीचे काफी धूल जम जाती है अतः उसके लिये एक मोरपंख या गिद्ध का पंख रखिये और नित्य प्रति उसे तारों के अन्दर डालकर धूल साफ़ करिये। किन्तु हर सातवें दिन मुलायम कपड़े से पूरी सफाई होना आवश्यक है चाहे उसमें आधा घन्टा लग जाय। ठीक वैसे ही जैसे कि घर के फर्श की सफाई नित्य प्रति होती है फिर भी माह में १ या २ दिन उसकी धुलाई आवश्यक होती है। २४-रियाज करने के लिये एकान्त होना आवश्यक है। आपका परम मित्र भी वहां नहीं होना चाहिये अन्यथा रियाज़ वास्तव में रियाज नहीं हो सकेगा। अनुभव करने से पता लग जायगा कि रियाज के समय किसी व्यक्ति उपस्थित रहने से आपकी भावना प्रदर्शन की बन जायगी न कि रियाज़ की, क्योंकि रियाज शुष्क होता है और आप किसी दूसरे के समक्ष वह शुष्क कसरत नहीं रखना चाहेंगे, भले ही दूसरा व्यक्ति अापकी ओर ध्यान न दे। यदि आप चेष्टा भी करेंगे तो शुष्क रियाज उस दिन निश्चित रूप से मधुर रियाज का स्थान ले लेगा और उससे आपके विकास में बाधा पहुंचेगी। अतः एकान्त परम आवश्यक है। उस समय तो आप और आपका सितार ही होने चाहिये। रियाज पर बैठने से पूर्व आप अगर-चन्दन जला सकते हैं और उसे सितार के चारों ओर फिराकर अपनी उपासनात्मक भावनाओं को जाग्रत कर सकते हैं। वह काठ के सितार की पूजा नहीं होगी, अपितु संगीत और उसकी अधिष्ठात्री देवी भगवती सरस्वती की पूजा होगी। २५-किसी भी व्यक्ति के समक्ष अन्य कलाकार की निन्दा न करें, यथा सम्भव उसकी प्रशंसा ही करें अर्थात् केवल उसके गुणों पर दृष्टिपात करके लोगों के सामने रक्खें । कुछ समय में इस प्रकार अन्य कलाकारों की सदैव प्रशंसा करना आपका स्वभाव हो जायगा जो कि आपके यशकीर्ति बढ़ाने में सहायक होगा और आपके अन्दर कोमल भावनाओं का संचार करेगा जो प्रत्येक कलाकार के लिये आवश्यक हैं। २६-नित्यप्रति कम से कम ४ घन्टे अभ्यास करना आवश्यक है, अधिक हो जाय तो और उत्तम । क्रम से अलंकार, पल्टे, बोल, मीड़, गमक, झाला का अभ्यास करना चाहिये । इस प्रकार हाथ रोज़ तैयार होता चला जायगा । जितना आवश्यक भोजन है उतना ही आवश्यक अभ्यास है, यह आपको कुछ ही काल में पता लग जायेगा।