पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१८६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

बीसवाँ प्रसिद्ध सितार वादकों के जीवन चरित्र अमृत सैन अमृतसैन १६ वीं शताब्दी के सितारवादकों में अग्रगण्य स्थान रखते हैं। आपका जन्म सन् १८१३ ई० में हुआ। आपके पिता उस्ताद रहीमसेन अपने समय के श्रेष्ठतम सितार वादक थे अतः संगीतमय वातावरण में ही अमृतसैन ने जन्म लिया और परिवर्द्धित हुए । अनुकूल परिस्थितियों के कारण और अपने पिता से सीनाबसीना तालीम लेने के कारण, छोटी उम्र में ही इनकी गणना प्रभावशाली सितारवादकों में होने लगी। अमृतसैन के अन्य दो भाई न्यामतसैन और लालसैन भी थे, किन्तु न्यामतसैन बचपन में ही स्वर्गवासी हो गये और लालसैन भी रोगी होने के कारण उच्च कोटि के कलाकार न बन सके। अमृतसैन को जयपुर नरेश महाराजा रामसिंह का दीर्घकालीन आश्रय प्राप्त हुआ। जयपुर राज्य से अनेक प्रकार के सुख, सुविधायें, सम्मान इन्हें जीवन भर मिले । आपके अन्दर सितार वादन की अनेक प्रमुख विशेषताओं के साथ-साथ एक आश्चर्य जनक विशेषता यह थी, कि एक ही राग को महीनों तक अभिनव कल्पनाओं के साथ प्रस्तुत करने की क्षमता रखते थे। इन्होंने अपने जीवन में सितार वादन कला को चर्मोत्कर्ष पर पहुंचाया। सुदृढ़ और विशाल शिष्य परंपरा प्रतिष्ठित करते हुए, पौष कृष्ण ८ सन् १८८३ ई० को प्रातःकाल की बेला में, जयपुर में ही आपका शरीरान्त हो गया । जयपुर के अनेक सितारवादक आज भी स्वयं को मियां अमृतसैन के घराने का बताकर गर्व अनुभव करते हैं। तसैन का स्वभाव बड़ा सरल और व्यक्तित्व बहुत सुन्दर एवं आकर्षक था। हृदय में दया और कोमलता मानो कूट-कूट कर भरी थी । विलासी जीवन से दूर, कठोर परिश्रमी संगीत के साधक अमृसैन ने संगीत के क्षेत्र में जितना सम्मान प्राप्त किया, उतना शायद किसी बिरले को ही मिला होगा।