पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१८७

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१६२ सितार मालिका अमीरखां अमीर खां के पिता का नाम वजीरखां और दादा का नाम हैदरबख्श था, ये सभी लोग अपने समय के श्रेष्ठतम संगीतज्ञ रहे। प्रसिद्ध सितारवादक अमृतसेन के बहनोई होने का गौरव भी अमीरखां को प्राप्त था। सर्वप्रथम आपने जयपुर के महाराज रामसिंह जी के यहां नौकरी की, तत्पश्चात ग्वालियर नरेश जयाजीराव के प्रश्रय में रहे । महाराज जयाजीराव के पुत्र महाराज माधवराव जी को आपने संगीत शिक्षा दी। इस प्रकार अमीर खां साहब को राजगुरु बनने का सौभाग्य भी प्राप्त हुआ। सरल हृदय और भोली प्रकृति इनके स्वाभाविक गुण थे, तनिक प्रार्थना करने पर किसी को भी सितार वादन सुना दिया करते थे । इतने विनम्र होते हुए भी अमीर खां में स्पष्टवादिता का विशेष गुण था । श्राप इस वाक्य के कट्टर विरोधी थे कि "सितार वादक उच्चकोटि का बीनकार भी बन सकता है। आप कहा करते थे कि कोई भी व्यक्ति एक जीवन में दोनों साज बजाने में पूर्ण नहीं हो सकता। दीर्घ आयु प्राप्त करने के उपरान्त सन् १६१५ ई० के कार्तिक महीने में आपका स्वर्गवास हो गया। आपके गत, तोड़े आदि का काम पूर्व परम्परानुसार उत्तमकोटि का था। पूना के इतिहास संशोधक मंडल ने आपकी कुछ गतों का संग्रह भी किया है, ऐसा सुनने में आता है।