पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/१९०

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बीसवां अध्याय इमदादखां आपके पिता साहबदाद प्रसिद्ध संगीतज्ञ हद्द-हस्सू खां की सांगीतिक परम्परा से संबद्ध थे। सन् १८४८ ई० में साहबदाद घर इमदाद खां ने जन्म लिया। १६ वर्ष की आयु में उनकी शादी करदी गई और २१ वर्ष की आयु में आप एक पुत्री के पिता भी बन गये । इनके पिता को इस घटना से बड़ा दुख हुआ क्योंकि वे इमदाद खां को एक महान संगीतज्ञ के रूप में देखना चाहते थे, न कि गृहस्थाश्रम के बन्धनों में जकड़ा हुअा अशान्त मानव । पिता ने इमदाद खां पर किसी प्रकार प्रभाव डाल कर १२ वर्ष तक अखण्ड ब्रह्मचर्य अवस्था में संगीत साधना करने का वचन ले लिया, फलस्वरूप इमदाद खां की प्रचंड संगीत साधना प्रारम्भ हुई । पिता की मृत्यु के पश्चात् इमदाद खां ने रजबअली साहब का शिष्यत्व ग्रहण किया। कुछ समय पश्चात रजबअली खां की मृत्यु हो गई और इमदादखां बनारस चले आये। यहां कुछ काल तक ठहर कर इमदादखां ने स्वयं अपने ढंग से सितार का अभ्यास किया। बीना, रबाब और पखावज के विभिन्न गत-तोड़ों का आपने कुशलता से सितार वादन में समन्वय किया। अनेकानेक तिहाइयों, तान और सपाट तानों का सितार में प्रचलन किया। सपेरों की धुन, पुल से गुजरती हुई रेलगाड़ी की धुन, इत्यादि के प्रयोग भी उन्होंने इस वाद्य में सफलता पूर्वक किये। अभिनव कल्पनाओं तथा जन-जीवन की मर्मस्पर्शी अभिव्यक्तियों के संबल ने इनकी वादन शैली को संपुष्ट किया। एक ही पर्दे पर सातों स्वरों को सरलता के साथ शुद्ध रूप में प्रस्तुत कर देना इनकी विशेषता थी । इस प्रकार उ० इमदाद खां ने सितार वादन की एक नई धारा को जन्म दिया, जिसका नाम इमदाद- खानी बाज पड़ा। कुछ समय पश्चात इमदाद खां सर ज्योतिन्द्र मोहन टैगौर के साथ बनारस से कलकत्ता चले आये। यहां आकर इमदाद खां साहब ने प्रसिद्ध सितारवादक सज्जाद मोहम्मद की विशेषताओं का भी अपनी वादन शैली में समन्वय किया । महाराजा सर ज्योतीन्द्र मोहन टैगौर इमदादखां के सितार वादन से बहुत प्रभावित थे। उन्होंने इमदादखां को अपने दरबारी संगीतज्ञों में स्थान देकर उनका सम्मान किया था। इमदादखां की आयु का अन्तिम भाग इन्दौर में समाप्त हुआ। महाराजा होल्कर के दरबारी संगीतज्ञ के पद को सुशोभित करते हुए, सन् १९२० में ७२ वर्ष की आयु में आपकी मृत्यु हो गई।