पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२०१

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इक्कीसवां अध्याय ७० रागों का वर्णन ( तानालाप सहित ) अड़ाना- यह राग आसावरी अंग का अतएव इसमें गान्धार, धैवत और निषाद कोमल तथा अन्य स्वर शुद्ध लगते हैं। प्रायः आरोह में गान्धार को टाल देते हैं। अवरोही में धैवत को वक्र रखते हैं जैसे-सां ध नि प । इसमें सां नि ध प जैसी सीधी तान कभी नहीं लेते । वादी स्वर तार सप्तक का पड्ज और संवादी पंचम है। राग का मुख्यांग सां निध नि प, म प म ग म रे सा हैं । (प्रायः विद्यार्थी कण स्वर की अवहेलना कर देते हैं जबकि कण से राग का सौंदर्य बढ़ता है । उनकी कठिनाई को सरल करने के लिये हमने कण को स्वर के ऊपर न लिखकर जिस स्वर का कण देना है, उसे दूसरे स्वर से पूर्व ही लिख दिया है। ) अथवा इसे दरबारी की भांति ही गाते हैं । परन्तु दरबारी मन्द्र सप्तक में विशेष प्रस्तार चाहती है जबकि अड़ाना का विस्तार तार सप्तक में होता है। दरबारी की छाया को तार सप्तक से हटाने के लिये कभी-कभी तीव्र निषाद का भी अल्प प्रयोग जैसे-सांध, नि सां, ध नि प की भांति कर लेते हैं। जैसा कि ऊपर लिखा गया है कि इसके आरोह में गान्धार को टाल देते हैं और अवरोह में धैवत को वक्र रखते हैं अतः प्रायः षाडव-पाडव करके गाते हैं। इस प्रकार सा रे म प ध नि सां आरोही और सांधु नि प, म प, ग म, रे सा अवरोही है। यह एक कानडे का ही प्रकार समझा जाता है । गान समय मध्य रात्रि का है । मुख्यांग-सां ध नि सां, ध नि प, म प, ग म रे सा है । अलाप का स्वरूप निम्न है:- नोट-जहाँ एक मात्रा में ही दो या अधिक स्वर दिखाने हैं वहाँ ऐसा निशान न लगाकर वे स्वर सटे हुए कर दिये हैं। सा, रेनि साध सानि सानि सा. रे म प, मग, मग, म, सारे सा । सा रे म प, निध, निध नि प, म प, निनि पम प मग मग म सारे सा । सारे मप निध निध नि सां, रें सा, रे रेंसां, निसां निध निध नि प, मप नि, निप मप, सां, रें सां, मंगं, मंरें सां, निप मप मग मप सां, निधू नि रें सां, मंगं मंग म रेंसां, मग मग म रे मा, सां रें सां, रेंध, नि प, निम निध सा, मग मग म, सारे सा । लिसा रेम पनि मप सां, ध नि सां, रें, रेसां निसां निध, निप रेम पनि मप, सां, निध नि प, मप नि, निप मप सां, रें, निसां रेंसां, रें सां, रेंसां निसां रेंसां निध नि प, परें, सां, रेनि सां, निधु नि प, म, निम प मग मग मरेसा। इस राग की तानें गाते या बजाते समय आरोही में ठीक सारंग की भांति ही सारे म प पूर्वाङ्ग में और पनि सां या नि ध नि सां उत्तरांग में लेकर, स ध नि प, म प ग म रेसा के आधार से अवरोही को पूर्ण कर लेते हैं। आरोही में सारंग की छाया हटाने के लिये नि सा रे म लेते हैं। अब इसी आधार पर तानें बनाने के लिये हम स्वरों को उलट पलट कर रखेंगे । रटने के बजाय ध्यान से समझने का प्रयत्न करिये । निम्न तानें इसी आधार पर बना कर लिखी जा रही हैं :-