पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२१३

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सिलार मालिका यूँ समझिये कि जब भीमपलामी में गांधार और मध्यम तीत्र कर दें तो इस राग की रचना होगी। इसलिये मन्द्र सप्तक में नि ध प और पनि ऽ सा या पनि रे सा के स्वर विस्तार तक भीमपलासी ही दिखाई देती है, परन्तु तीब्र गांधार के आते ही वह तुरन्त समाप्त हो जाती है। उत्तरांग में म प नि ध प, सां नि ऽ ध प से सरस्वती की छाया आती है। परन्तु गांधार स्वर जो सरस्वती में वर्जित है, उसके पाते ही सरस्वती तिरोहित हो जाता है। इस प्रकार यह राग अनेक अन्य रागों की छाया रखते हुए भी अत्यन्त मधुर एवं सरल है। वादी षड्ज एवं सम्वादी पञ्चम है। गान समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है। आरोही-सा ग म प नि सां तथा अवरोही-सां नि ध प म ग रे सा है। मुख्यांग-नि सा ग म प म ग रे सा है । मेध प, अलाप-- नि सा, नि ध प, पनि ऽष नि ऽ सा, पनि रे ऽ सा, नि रे ऽ सा, रे नि ध प, पनि सा, नि सा रे नि ध प, प नि 5 5 सा, नि ऽ सा ग ऽ रे सा, गऽ रे सा, रे नि ऽ धप, पनि ऽ सा, नि सा ग म ग 5 रे सा, नि सा ग म प ऽ, म प, ग म प, सा ग में प, म प ग म ग प, प म ग म ग रे ऽ सा। नि सा ग म प, ग म प, ध प, म प ग म प, सा ग म प, नि ऽध प, म पनि ध प, पनि ध प, म पनि 55 पनि सां, रे नि ऽध प, म प नि सां रें सां नि ऽ ध प, ग म प, नि सा ग म प, नि ध प म ग में गरेऽ सा। पनि ऽ नि सां, म पनि ऽ नि सां, ग म प नि नि सां, सा ग म प नि ऽ नि सां, रे सां, गंऽरें सां, रे नि ध प, म प ध नि ऽध प, सां नि ध प, रें सां नि ध प, ध म प ग म प, नि सा ग म प नि ध प, म प म ग म ग रेऽ सा। ताने- ५-नि सा ग म ग रे सा सा, नि सा ग म प म ग रे सा सा, नि मा ग म प ध प म ग रे ग रे सा सा, नि सा ग म प नि ध प म ग म ग रे सा, नि सा ग म प नि सां रें सां नि ध प म ग रे सा, नि सा ग म प नि सां गं रें सां नि ध प म ग रे सा सा। २-म ग रे सा, प म ग रे, ध प म ग, नि ध प म, सां नि ध प, रे सां नि ध, प नि सां रें सां नि ध प, म प ध नि ध प म ग, सा ग म प म ग रे सा । ३-ग ग रे, ग ग रे, ग ग रे सा, म म ग म म ग म म ग रे, प प में, प प मे, प प में ग, ध ध प ध ध प ध ध प म, नि नि ध नि नि ध नि नि ध प रे रे मां रें रें सां रेंरें सां नि ध प म प, ग म प नि ध प म प, म ध प म रे सा सा। १५-छायानट यह कल्याण अंग का राग है। इसमें दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। तीव्र मध्यम केवल पञ्चम के साथ ही प्रयुक्त होता है जैसे-ध म प, या पध मप। कभी-कभी विवादी के नाते कोमल निषाद का भी, धैवत के साथ जैसे-धनि धप, प्रयोग किया जाता है। परे और रे ग म प ग म रे ऽ सा का प्रयोग बहुतायत