पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२१४

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इक्कीसर्वां अध्याय १८३ से किया जाता है। वादी पञ्चम और सम्वादी ऋषभ है। गायन समय रात्रि का प्रथम प्रहर है। आरोह–सा रे ग म प नि ध सां और अवरोह–सां नि ध प, म प ध प ग म रे सा है। मुख्यांग-ध प, रे, ग म प, ग म रे सा है। अलाप--- 'सा, ध प, नि सा रे सा, रे ग म प, ग म रे सा, रे ग म, ध प, ध म प, रे, ग म प, सा रे, सा, ध ध प प, रे ग म प, सां रें सां नि ध प, रे ग म प, ग म रे सा। सा, प, रे, ग म ध प, प ध में प सां, रे सांध प, सां रे नि सांध प, ध म प, रे, ग, म ध प, म प ध प, ध नि ध प, रे ग म प, ग म रे सा । पपनि नि सां, पनि सां, रें सां, गं मं रें सां, रें सां ध प, सां, सां रे नि सां, ध प म प, रे ग म प, ग म रे सा, ध ध प प सा, रे सा, ग, म प ग म रे सा। तानें--- १-रे ग म प ग म रे सा, रे ग म प, ध प म प, ग म ध प ग म रे सा, रे ग प ध प मैप सां रें सां नि, ध प म प, रे ग म प, ग म रे सा, गं मं रें सां, रेंरें सां नि, धनि ध प म प ध प, रे ग म प ग म रे सा । २-रे रे सा, रे रे सा नि सा, रे ग म प ग म रे सा, ध ध प ध ध प म प, ध नि सां रें सां नि ध प, रें रें सां रें रें सां नि सां, ध नि ध परे ग म प, रे ग म प, ग म रे सा। ३-रे सा नि सा, ग म रे सा नि सा, म प ध प ग म रे सा नि सा, प ध म प सां सां रें सां, गं मं रें सां नि सां, रें गं मं पंग मं रें सां, ध प म प, ध नि ध प म प, रे ग म प, ग म रे सा नि सा । १६-जैजैवन्ती इस राग में दोनों गान्धार और दोनों निषाद लगते हैं। जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण है। कुछ लोग प्रारोह में पञ्चम वर्जित करके गाते हैं और कुछ धैवत । बात यह है कि इस राग को लोग देस और बागेश्री अंग से गाते हैं। देस को हटाने के लिये आरोह में गान्धार लेकर रे ग म प नि सां जैसी आरोही करते हैं और बागेश्री अंग से गाने वाले शुद्ध गान्धार और शुद्ध निषाद लेकर रे ग म ध नि सां जैसा श्रारोह करते हैं अब प्रश्न यह है कि इन दोनों में से कौन सा मत माना जाय। पुरानी बन्दिशों के देखने से मालूम होता है कि ध्रुपद शैली के गायक परे की संगत को विशेष रूप में लेते हैं जो आरोही का ही स्वरूप है। अतः लेखक भी धैवत वर्जित की आरोही, अथवा यूँ कहो कि धैवत को वक्र करके गाने के ही मत से सहमत है। अवरोही में शुद्ध रूप से देस आता ही है, जैसे-सां नि ध प म ग रेऽ। अवरोही के अंत में केवल दो शुद्ध ऋषभों के बीच में कोमल गान्धार रखते हैं जैसे-रे ग रे सा। इसके अतिरिक्त सदैव आरोही और अवरोही में शुद्ध गान्धार का ही प्रयोग किया जाता है, जैसे-रे ग म ग रे,