पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२१६

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गायन इक्कीसवाँ अध्याय ३-सा रे रे, रे ग ग, ग म म, म प प, पनि नि, नि सां सां, सा रे रे ग ग म म प प नि नि सां, रे ग रें सां नि सा रे ग रे सा नि सा, नि ध प म ग म रे ग रे सा नि साध निरेऽ। १७--जौनपुरी इस राग में ऋषभ शुद्ध तथा शेष स्वर कोमल लगते हैं। आसावरी के भी ठीक यही स्वर हैं, परन्तु आसावरी की आरोही में गान्धार-निषाद दो स्वर वर्जित हैं जबकि जौनपुरी की आरोही में केवल गान्धार ही वर्जित है । अतः आसावरी को जाति औडव-संपूर्ण है जब कि जौनपुरी षाडव-संपूर्ण । इसके अतिरिक्त आसावरी के वादी- संवादी धैवत व गान्धार हैं जबकि जौनपुरी के वादी-संवादी पञ्चम-षड्ज हैं । समय दिन का द्वितीय प्रहर है । आरोही - सा रे म प ध नि सां, और अवरोही सां नि ध प म ग रे सा है। मुख्यांगःनि सा रे म प ध म प ग रे म प है । अलाप- सा, निध नि सा, नि ध प ध नि सा, रे म प ग, रे म प ध म प ग, म प ध म प ग, रे म ध प, म रे म प, म प ध प ग रे म प, ध नि ध प म प ध प ग रे म प, गऽ रेसा । सा रे म प ध ऽ धु ऽध प, म प ध नि सांध 54 5 प, रें सां नि मां रें सां नि धुप, ध म प ध नि सां, रे नि ध प, गंऽ रें सां रें सां नि सा रे धऽ प, सां नि ध प म प धम प ग ऽ रे सा, रे म प। गऽ रे सा, रे म प ग ऽ रे सा, रे म प ध म प ग ऽ रे सा, रे म प ध नि ध प म प ग ऽ रे सा. रे म प ध नि सांऽरें सां नि ध प म प ग रे सा, गं रें सां रे नि सां ध ध प, धु प ध म प ध नि सां, नि ध प म प ग ऽ रे सा रे म प । ताने- १-सा रे म प ग ग रे सा, रे म प ध म प ग ग रे सा, रे म प ध नि सां ध प म प ध प ग ग रे सा, मप ध नि सां रेंग रें सां नि ध म प ग गरे सा। २-नि सा नि रे सा रे नि सा, रे ग रे मरे ग सा रे, म प म ध प ध म प, प ध पनि ध नि पध, ध नि ध सां नि सां धनि, सां रें सां गं रें गं सां रें, ध नि सां नि, प ध नि ध, म प ध प, ग ग रे सा । ३ - सा रे रे, रे म म, म प प, प ध ध ध नि नि, नि सां सां, सा रे, रे मम प प ध ध नि नि सां, रे म प धुनि सां, गं रें सां रें सां नि ध प म प ध प ग गरे सा। १८-झिंझोटी यह खमाज अङ्ग का राग है। इसमें दोनों निषाद तथा शेष स्वर शुद्ध हैं। कोई कोई गुणी कोमल गान्धार का भी प्रयोग करते हैं । जाति संपूर्ण संपूर्ण है। आरोह में शुद्ध तथा अवरोह में कोमल निपाद लगाते हैं। वादी गान्धार तथा संवादी धैवत है। यह एक