पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२१७

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१८६ सितार मालिका क्षुद्र प्रकृति का राग है अतः इसमें ठुमरी आदि अथवा अन्य रागों को मिश्रित करके गाते हैं। इसका विस्तार विशेष रूप से मन्द्र स्थान में किया जाता है। कुछ ध्रुपद गायक इसे खंभावती की भांति, आरोह में गान्धार-निषाद वर्जित करके गाते हैं, , परन्तु यह रूप प्रचार में कम है । इसलिये खमाज की आरोही में ऋषभ लेकर और मन्द्र सप्तक में विशेष रूप से प्रस्तार करने से यह राग स्पष्ट होता है । इसका अारोह सा रे ग म प ध नि सां और अवरोह सां नि ध प म ग रे सा । 'मुख्यांग ध सा रे म ग, प म ग रे, सा नि ध प है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है । अलाप- ध सा रे म ग, सा नि ध प, ध नि ध सा, रे म प, प ध म प, ग प म ग, सा रे ग सा नि, रे सा नि सा, नि ध नि ध प, ध सा रे म ग, नि सा रे म ग, नि सा रे नि सा नि ध प ध, प, ध मा रे म ग, रे सा । सा रे ग म ग, ग प म ग, ग म प ध, नि ध प, ध सां नि ध प, प नि ध प प ध प म ग, म प म ग, ध प, ध म, प ग, म ग रे सा, रे नि सा, नि ध प, नि ध प ध नि मा, ध नि सा रे ग म ग, म प, ध नि ध प भ ग, रे ग म ग रे सा नि ध प, ध सा रे म ग, रे, सा। म, प ध सां, नि सा रे सां नि ध प, नि ध प ध नि सां, रें मं गं, रे सां, नि ध प, ध नि ध प, मध प म ग, रे म ग रे सा नि ध प, नि मा रे रे सा नि ध प, गऽ रे सा नि ध प, ध सा रे म ग, प म, प ग, म ग रे मा, नि ध प, ध सा रे म ग, रे सा । ताने- १-सा रे म ग रे सा नि सा, सा रे म प ध प म ग रे सा नि सा, सा रे म प ध नि ध प म प म ग रे सा नि सा, सा रे म प ध नि सां नि ध प म ग रे सा नि सा, पप म गरे सा नि सा रे सा नि ध प ध नि सा । २-गगरे सा, प प म ग रे सा, ध ध प प म ग रे सा, नि नि ध प म ग रे सा, नि नि ध प, ध ध प म, प प म प म गरे सा, सां रें सां नि ध प म प म गरे सा, प म गरे सा नि ध प, ध सा रे म ग ग रे सा। ३-पघसा,ध सा सा रे ग, रे ग म, ग म प, म प ध, प ध नि, ध नि सां, सां रेंग रें सां नि ध प, सां नि ध प म ग रे सा, रेसा नि ध प ध नि सा, ध सा रे म ग ग रे सा । १६--तिलककामोद यह खमाज अङ्ग का राग है। इसमें समस्त स्वर शुद्ध लगते हैं। आरोही में चैवत वर्जित रखते हैं अतः जाति षाडव-संपूर्ण है। कोमल निषाद ले लेने से देम की छाया आती है अतः कोमल निषाद बिल्कुल नहीं लगाना चाहिये । मन्द्र सप्तक में पनि सा लेते हैं, परन्तु मध्य सप्तक में एकदम पंचम से षड्ज पर जाने से राग तुरन्त स्पष्ट हो जाता है । अवरोही में भी सांप लेकर ध म ग लेते हैं । देस में न्यास का स्वर ऋषभ है जबकि इसे देस से अलग करने के के लिये गान्धार और निषाद पर न्यास करते हैं, जैसे .