पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२२

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$ द्वितीय अध्याय तार मिलाने के विभिन्न ढंग और परदों की संख्या ohc -- सितार के तार- सितार में पहिले केवल मात ही तार होते थे । परन्तु अब किमी-किमा में मात और किसो-किमी में आठ या छः तार भी होत हैं। इनके अतिरिक्त बड़ी घोड़ी के नीचे एक छोटी घोड़ी पर और भी अनक तार लगे हुए होने हैं। इन तारों की खंटियाँ मारी की मारी डांड में लगी रहती हैं। इन तारों की संख्या ग्यारह मे नरह तक होनी है। अधिकांश मितारों में यह संख्या ग्यारह ही होती हैं। इन्हें तम्ब के तार कहा जाता इस प्रकार एक उत्तम मितार में तमाम तारों की मंग्या अठारह मे लेकर इक्काम तक भी होती है। तरब के मारे ही तार स्टील ( फौलाद) के होते हैं। जवारो खालते समय, इन तारों में प्रत्येक तार की जवारा पृथक्-पृथक् खोलनी पड़ती है ताकि प्रत्येक तरब भली प्रकार ध्वनि देती रहे। वाज का तार- यदि मितार को अपने मामन इस प्रकार रखा जाये कि तंबा मीधे हाथ की ओर और खंटियां बांये हाथ की ओर रहें. तो बाहर की ओर का मबम पहिला नार फौलाद (स्टील ) का होगा। इमी तार को परदे पर दवा कर स्वर निकाले जाने हैं। चूँकि यही तार मितार में मबसे अधिक बजता है. अनः इमे 'बाज', 'मध्यम' या 'नायकी' का तार कहते हैं। मध्यम और नायकी का तार कहने का रिवाज अब नहीं है इमलिय अब इसे 'बाज के तार के नाम से ही पुकारते हैं। जोड़े के तार- इसके बाद अन्दर की ओर भान पर दो तार पीनल के होते हैं। कि यह दोनों तार एक जैसे ही होते हैं. अतः इन्हें जोड़ा' कहा जाता है। पंचम का तार- इसके बाद फिर और अन्दर की ओर आने पर एक पतला तार फौलाद का होता है । चूँकि इमे पञ्चम स्वर में मिलाया जाता है. इसलिये इम 'पञ्चम' का नार कहते हैं। गांधार अथवा खरज का तार- इसके बाद मोटा पीतल का तार होता है। कुछ विद्वान इसे मन्द्र सप्रक के पत्रम में और कुछ मन्द्र षड्ज में मिलाते हैं । इमलिये इम खरज का तार कहते हैं।