पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२२२

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इक्कीसवां अध्याय ३-सा रे रे, रे म म, म प प, प ध ध, ध सां सां, सा रे, रे म, म प, पध, ध सां, सारे मरे, रे म प म, म प ध प, प ध सां ध, ध सा रे सां, म म रे सा, प प म रे, ध ध प म, सां सां ध प, रे रे सांध, सां सां ध प मरेध सा। २४-देवगिरी बिलावल यह बिलावल अङ्ग का राग है। इसमें सभी स्वर शुद्ध लगते हैं। प्रारोह में मध्यम वर्जित है तथा अवरोह सम्पूर्ण है। अतः जाति पाडव-सम्पूर्ण है। इसमें यमन और बिलावल का मिश्रण किया जाता है। परन्तु इस मिश्रण में इस बात की ओर ध्यान रखा जाता है कि तीव्र मध्यम बिलकुल न लगने पाये, अन्यथा यह देवगिरी से हटकर यमनी-बिलावल हो जायेगा। इसके मन्द्र सप्तक में ग रे नि रे सा, नि रे गऽ, और तार में नि ध नि सां नि रेंग रें सां यमन राग को प्रकट करते हैं । अन्त में बिला- वल को दिखाकर जैसे-ग प, म ग रे अथवा नि रे ग रे नि सा लेकर अलाप को समाप्त करते हैं। धैवत और पञ्चम, पर कोमल निषाद का कण भी इसमें सुन्दरता उत्पन्न करता है। वादी षड्ज तथा सम्वादी पञ्चम, गायन समय दिन का प्रथम प्रहर है। आरोह-सा रे ग प ध नि सां और अवरोह-सां नि ध प म ग रे सा है। मुख्यांग- ग म म रे सा, नि ध प सा है। अलाप...- ऽरे सा, सा, नि ध सा, नि रे ग, रे सा, नि ग रे ग, ग म ग रे, नि रे नि, सा नि ध ए, सा रेग, ग प म ग रे, ग प ध प प ग म रे, ग ग प, ध ध प, गध प, ध प म गरे, ग प म ग रे सा । ग ग प, ध प.म ग म रे, ग प ध नि, ध प, ध नि ध प ग प म ग, नि रे ग, रे ग म य रे, म प ध नि सां, ध नि रें सां. रे नि, नि रेंग रें सां, रें सां नि ध प, म ग म रे, ग प ध नि ध प म ग रे, ग प म ग रे, ग रे नि रे सा । ग प ध नि सां, ध नि सां, ध नि सां रें सां, रेंग मंगं रें नि रें सां, सां रें सां नि ध प, सां नि ध नि सां नि ध प, ध प म प म ग, रे ग प म ग रे, नि रे ग, रे सा ध प. सा, रे सा, ग म गरे ग प ध प म ग रे, सा। तानें-- १-सा रे ग ग रे सा नि सा, सा रे ग प म ग म रे नि सा, सा रे ग प ध प म ग म रे नि सा, सा रे ग पध नि सां नि ध प म ग म रे नि सा, सा रे ग प ध नि सा रे सो नि ध प म ग रे ग म ग रे सा, सा रे ग प ध नि सा रे ग मं में रें सां नि ध प म गरे ग म ग रे सा नि सा। २-ग ग रे सा, प प म म रे सा, ध ध प प म ग रे सा, नि नि ध प म ग रे सा, सां सां नि नि ध प ग प ध प म ग रे सा, रेंरें सां नि ध नि सा रे सां नि ध प म ग ध