पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२३२

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इक्कीसवाँ अध्याय धनि रे नि ध प, म ध म ग, रे म ग रे ग म ग रे सा। प, म धृ प, नि ध प, रे नि धु प, म ध नि सां, नि ध नि ध र नि ध प, म ध सां, नि रे सां, नि रें गं, रे सा, नि रे नि ध प, ध प म, रे नि धु प, गं, रे सां, रे नि धुप, सां नि रे नि ध नि ध प ध प, म ग, मरे ग, म ध म ग रे सा। तानें-- १–नि रे ग ग रे सा नि सा, नि रे ग म ग ग रे सा नि सा, निरेग प मग ग रे सा नि सा, नि रे ग म प ध प म ग ग रे सा नि सा, नि रे ग म प ध नि नि ध प म ध प म ग ग रे सा नि सा, नि रे ग म प ध नि सा रे नि ध प म ध प म ग ग रे सा नि सा। २-ग ग रे सा, म म ग म ग ग रे सा. प प म प म ग रे ग म म ग म ग ग रे सा, धु धु प ध प म ग म, ग म प म ग ग रे सा, नि नि ध नि ध ध प ध प प म ग मंग रेसा, सा रे गं गं रे नि ध प म ध प म. ग प म ग, रे ग म प, म ग रे सा । ३-सा रे रे, रे ग ग, ग म म, म प प, प ध धु, ध नि नि, नि सां सां, सा रे, रे ग, ग म, म प, प ध, ध नि नि सां, सा रे ग रे. रे ग म ग. ग म प म, म प ध प, प ध नि ध, ध नि सां सां, रे नि ध प, म ध प में, ग प म ग, रे ग म ग. रे ग रे सा। ३६--वसंत यह राग पूर्वी अंग का है । यह राग परज, सोहनी आदि से अधिक समानता रखने के कारण, विद्वानों ने इसकी अनेक जातियां मानी हैं । भातखंडे जी इसे सम्पूर्ण मानते हैं। कुछ विद्वान पाडव-संपूर्ण। यह लोग अारोह में पंचम वर्जित रखते हैं । विज्ञान में इसके अारोह में ऋपभ-पंचम वर्जित करके औडव-संपूर्ण कहा है। इसमें दोनों मध्यम तथा ऋषभ-धैवत कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। वादी षड्ज तथा संवादी पंचम हैं । आरोहः-सा ग म ध र सो तथा अवरोह रे नि ध प म ग, म ध म ग रे सा। मुख्यांग-रे नि ध प, म ग मंग है । यह उत्तरांग प्रधान राग है । गायन समय उत्तर रात्रि है। परज-तथा बसंत का अन्तरः--परज में म ग म ग इस प्रकार दोनों मध्यमों को लेते हैं जब कि बसंत में तीन मध्यम से ही म ग म ग लेते हैं । फिर बसंत में धैवत पर भी रुकते हैं परन्तु परज में निपाद ही न्यास का स्थान है। बसंत में तार सप्तक के स्वर सां, नि धु, रे, नि ध, प, म ध र सां हैं जब कि परज में इन्हीं स्वरों को सां रे सा रें, नि ध नि नि, ध प, म प ध प. ग म ग की भांति लेते हैं। इस प्रकार आप देखेंगे कि बसंत में तार पड्ज़ को मधु रे सां की भांति दर्शाते हैं। जब कि परज में म ध नि, सां रे सां, नि धुप की भांति लगाया जाता है । बसंत में शुद्ध मध्यम एक विशेष प्रकार से, केवल आरोही में षड्ज से ललित की भांति लगाते हैं। जैसे रे नि धु प. मग गरे सा, सा म, म म म म म ग मध रें सां । किन्तु परज में तार पड्ज की ओर जाते समय तीव्र मध्यम जैसे मधु नि, सां और अवरोह में धु प ग म ग, म ग रे सा की भांति प्रयोग करते हैं । इस प्रकार आप स्पष्ट रूप से देखेंगे कि जो बसंत का म ध र सां है वह परज में म ध नि सां हो जाता है । राग