पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२३३

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सितार मालिका जो वसंत का मे ग म ग है वह परज में में ग म ग साथ में बसंत में धैवत के स्थान पर परज में निषाद का महत्व और बसंत में मुक्त रूप से पड्ज के साथ में प्रारोह में शुद्ध मध्यम आदि बातें ही दोनों को एक दूसरे से पृथक करती हैं। अब वसंत के अलाप इसे और स्पष्ट कर देंगे। अलाप-- सा ग, मै ग, मधु रे सां, नि ध प, सां नि धु, रे नि ध प, ध म प में ग, म नि ध प, मधु रे सां, रे नि धु प, ध नि सां नि धु प, धु में प. में ग म ग रे सा । सा, म. में भ, म ग, ग म प रे सां, नि म ध सां, नि रे सां, गं रे सां, नि ध प. रे सां नि ध प, म ध नि ध प, म ध रे सां, नि ध प, म ग म ग रे सा. नि सा म म, म म म, में ग, म ग रेसा । म ध रे सां, ध रे सां, नि , सां नि ध प, ध म प म ग म ग, मा म, म में म. में ग, ध रे, नि ध प, सां नि ध प. ध र सां नि ध प, मध सां, नि ध प, मध रे सां, रें नि ध प, म नि में ग, म ग रे सा । ताने- १–ग म ध प म ग म ग रे सा, ग म ध नि ध प म ग म ग रे सा, ग म ध र सां नि ध प में ग म ग रे सा, ग म ध नि रेंग रे सां नि ध प म ग म ध प म ग म ग रे सा। २-नि सा म म म ग म ग रे सा, नि सा म म म ग म ध म ग म ग रेसा, नि सा म म म ग म ध नि ध प प म ग म ग रे मा, नि मा म म म ग म ध सां नि ध प म ग म गरे सा, नि सा म म म ग म ध नि रे सां नि ध प म ग म ग रे सा, नि सा म म म ग म ध रें गंरें सां नि ध प प म ग म ग रे सा । ३-म म ग म म ग म ग रे सा नि सा. ध ध प ध ध प, ध ध प म ग रे सा नि सा, ३ रे सा रे रे सा रे रे सां नि ध प, म म ग. में म ग, म म ग, रे मा नि सा, गंगरें गंगं गं गं रे सां नि सां, नि नि ध नि नि ध प म प, म म ग म म ग म म गरे नि सा। ३७-बहार यह काफी अंग का राग है । इसमें गान्धार कोमल तथा दोनों निषादों का प्रयोग होता है । आरोह में ऋषभ एवं अवरोह में धैवत वर्जित है अतः जाति षाडव-पाडव है । गान्धार को प्रायः अवरोह में वक्र रखते हैं । वादी स्वर मध्यम एवं संवादी षड्ज है। इसमें प्रायः नि ध नि सां की भांति तीव्र निषाद को लगाते हैं। ठीक इसी प्रकार मलार में भी इन्हीं स्वरों को लगाते हैं । अतः मेरे विचार से इसे मलार से पृथक करने के लिये नि ध नि सां को नि ध नि सां की भांति लगाना चाहिये और मल्लार में यही स्वर नि ध नि ऽ सां की भांति । वैसे तीव्र निषाद को रे नि सां और नि सां रेंग रें सां नि सां की प्रकार लगाना चाहिये । इसमें बागेश्री और कान्हड़ा की छाया रखते हैं। आरोही-सा ग म, प ग म, नि ध नि सां और अवरोही सां नि प म प, ग म, रे सा है । मुख्यांगः-म प गम, ध, नि सा है और गान समय मध्य रात्रि तथा बसंत ऋतु में प्रत्येक समय । ।