पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

६ द्वितीय अध्याय एक पीतल का 'पंचम' और एक पीतल का 'लरज' था। यदि इच्छा हुई तो इनके बाद बचे हुए जोड़े के तार को और 'फौलाद' के पञ्चम के तार को भी चढ़ा लिया। सितार के तार मिलाते समय सदैव तारों को पहले थोड़ा उतार कर ही मिलाना चाहिये । अन्यथा तार टूटने का डर रहता है । म. को. माती. -मध्यम. पंचमः ....धैवत. .......... को. ध.ती. 'नी.को नी.ती. अदी निषाद, AB M रे.को. ऋषभ. ग.को. गांधार. गं.ती. म.को .....मध्यम. म ती. प.. पंचम. .धैवत. ध.ती. 96 90 प.को. १९ २० नीती. निषाद २४ २५ षड्ज. कोर ......ऋषभ. 'ती. }..... गांधार ग.ती. म.को ......मध्यम. सितार में अति मन्द्र सप्तक- इस प्रकार से मन्द्र सप्तक का काम दिखाने में बड़ी सरलता हो गई। कारण कि बाज के तार पर तो सा नि ध प म तक बजाकर, जोड़े के तार पर ग, रे बजाकर, जब जोड़े के तार को खुला हुआ बजाया तो मन्द्र का षड्ज बोलने लगा। चूंकि अब मोटे वाला पीतल का तार है जो अति मन्द्र सप्तक के पञ्चम पर मिला हुआ है, है, इसी पर अति मन्द्र सप्तक का नि और ध दबा कर बा लिया। जब इसे भी खुला बजाया तो प बोलने लगा।