पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२४०

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इक्कीसवाँ अध्याय अवरोही में निषाद पर अन्य स्वरों के समान ही बल देकर जैसे सां, नि, ध, प म; लौटते हैं। मध्यम पर न्यास करके प ग की संगति लेकर, म ग रे सा से षड्ज पर श्रा जाते हैं। यह सब होते हुए भी, चूँकि यह एक उत्तराङ्ग प्रधान राग है, अतः उठाव में षड्ज से एकदम धैवत पर जाते हैं । जैसे-सा, ध, ध प म । जाति सम्पूर्ण-सम्पूर्ण है। आरोह ह–सा, ध, प म, प ग, म ध सां । अवरोह – सां नि ध, प म प ग, म ग रे सा । मुख्याङ्ग-साध, नि ध प म, प ग, म ग रे सा। यह अत्यन्त मधुर एवं मींड़ प्रिय राग है। इसमें तार षड़न से मध्य सप्तक के मध्यम की भीड़ बड़ी भली लगती है। गान समय रात्रि का चतुर्थ प्रहर है । अलाप- सा, ध, ध प म, म पग, मध सां, नि, ध, पम, नि ध, प म, नि ध, पम, ध प म, प ग, म, ध, प, ध म, म ग रे, सा, नि सा सा म, म प ग, म म म, म ग, मध, नि प, ध प म, प ध सां, नि, ध, प म, सां म, प ग, म ग रे सा । सा रे ग, म, प म, ध, प म, नि ध प म, सां, नि ध प म, रे, सां नि ध प म, म प ग, म ध सां, रें सां नि ध ऽप म, प ग, म ग रे सा । म ध सां, सां, रे नि, सां नि ध प, ध प म, रे नि ध प, प ध सां, नि ध प म, म ध प म, प ग, म ध सां, सां ध प म, प ग, मध सां, नि रे सां, रे गं मं, मै मं, में गं, मैं गं रे सां, नि, ध, प, म, प ग, म गरेसा । तानें- १-सा सा म म प प ग ग म ग रे सा, सा सा म म प प ध ध प प म प म गरे सा, सा सा म म प प, नि नि ध प म म प प, म प म ग रे सा, सा सा म म प प ग ग म म ध ध सां सां, रे नि ध प म म म प म ग रे सा । २-म म प प ध नि ध प, म ध सां रे सां नि ध प, नि नि ध प म ध प म, प ग म ग रे सा नि मा नि नि रे सा नि सा म म, म म म ग म ध सां सां, सां नि ध प म ध प म, प ग म ग म रे सा सा । ३-सा सा सा, ध ध ध, प प प, म म म, नि नि नि, ध ध ध, प प प, म म म, म में म, ध ध ध, सां सां सां सां रे सां, नि ध नि, ध प ध, म म म, प प प, ग ग ग, म ग रे सा। ४५-- --भीमपलासी यह काफी अङ्ग का राग है। अर्थात् गांधार-निपाद कोमल तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। इसके आरोह में ऋषभ, धैवत वर्जित स्वर हैं, अतः जाति औडव-सम्पूर्ण है । वादी स्वर मध्यम तथा सम्वादी षड्ज है। गान समय दिन का तीसरा प्रहर है। आरोहः-नि सा ग म प नि सां अवरोह सां नि ध प म ग रे सा । मुख्यांगः-नि सा म, ग म प, म ग, म ग रे ऽ सा है।