पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२५१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सितार मालिका ३-सा रे नि सा, ग म प प, म प ध प. ध नि ध प म प ध प, नि नि सां रें सां नि ध प, ध नि ध प म ग म प, म प ध नि ध प म ग, रे ग म प म ग रे सा । ५६-ललित यह मारवा अङ्ग का राग है । इसमें ऋपस कोमल, दोनों मध्यम तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। पञ्चम वर्जित है अतः जाति पाड्य-पाडव है । शुद्ध मध्यम, वादी तथा संवादी षड्ज है। कुछ विद्वानों का कथन है कि ललित में शुद्ध के स्थान पर कोमल थैवत से गाना चाहिये। वैसे कोमल धैवत का ललित मधुर अवश्य लगता है किन्तु प्रचार में शुद्ध धैवत का ही ललित है । अतः हम यहां शुद्ध धैवत के ललित का ही स्वरविस्तार दे रहे हैं। इसमें दोनों मध्यम साथ-साथ लगाये जाते हैं। गान्धार एकन्यास का सुन्दर स्वर है। आरोहः-निरे ग म ध नि सां। अबरोह:--सां नि, धम, म, म ग रे सा है। मुख्याङ्ग:-नि रे ग म म म, म ग, म ग रे सा है। गान समय गत्रि का अन्तिम प्रहर है। पालाप- सा, नि रे ग म, रे ग म, म म म, म ग. रे ग म म म, म ग, म ध नि ध म म, ध, में म, ग म म म, में ग, रे ग म ग रे सा। निरे ग म, म म, ग म म म, म ग म ध, म म, नि ध में म, ग म म म, म ध सां, नि ध म म, ग म ध नि, नि ध म म, ग म म म, मग, म ग रे सा । रे नि सा, रे म, म म म ग, ध म नि ध, नि म ध म म ग, म नि ध सां, नि , सां, रे नि ध में, म ध सां, नि रे ग रे सां, रे नि ध म ध म म ग, म म म, म ग, मगरेसा। ताने १-नि रे नि सा, निरे ग गरे सा, नि रे ग म म म ग म ग रे नि मा, नि रे ग म ध मग म गरे नि सा, नि रे ग म ध नि ध म म ग म ग रे सा, नि रे ग म ध नि सां रें सां नि ध म म ग रे मा नि सा । २- म ग रे सा सा, ध नि ध म गम म म ग म ग रे सा सा, सां रे नि सां नि ध में धम म ग म ग रे सा सा, रेंग रे सां नि सां, ध नि ध म ग म, ग म म ग रे सा नि सा। ३-निरे ग, रे ग म, ग म ध, म ध नि, ध नि सा, नि रे, रे ग, गम, म ध, ध नि, नि सां, नि रे रे, रे ग ग, ग म म, म ध ध, ध नि नि, नि सां सां, सां रे सां नि ध म म ग, रे ग म गरे सा नि सा। ६०--विभास यह भैरव अङ्ग का राग है । इसमें मध्यम-निषाद वर्जित और ऋषभ-धैवत कोमल शेष स्वर शुद्ध हैं। जाति औडव-औडव है । संक्षेप में यूँ समझिये कि भूपाली के स्वरों में ऋषभ और धैवत कोमल करके गाने से इसकी रचना होती है। वादी धैवत व संवादी