पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२५४

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इक्कीसर्वां अध्याय २२३ ६३--शंकरा यह कल्याण अङ्ग का राग है। इसमें मध्यम वर्जित है। आरोह में ऋषभ भी वर्जित कर देते हैं। अतः जाति औडव-पाडव है। कुछ विद्वान इसे केवल सा ग प नि इन्हीं चार स्वरों पर गाया करते हैं । इसलिये वैवत और ऋषभ अल्प ही रहते हैं। इसमें सब स्वर शुद्ध ही लगते हैं। वादी गान्धार एवं संवादी निषाद है। गायन समय रात्रि का द्वितीय प्रहर है। 'आरोहः :--सा ग प नि ध सां । सां नि प ग रे सा। मुख्याङ्ग, ग प नि, प ग, रे सा है। अलाप- सा नि ध सा, नि प, पनि सा, साग, ग पनि, प ग, पनि, नि ध सां नि, नि प ग, ग प नि ध सां नि, प ग, प ग, रे सा । सा ग प, ग प, नि प, ग प, नि प, सा ग पनि प, नि ध सां नि प, रें सां नि, प, ग प सां, गं रें सां नि, प नि सां गंरें सां नि, नि ध सां नि प, ग प नि सां नि प, गप, गरे सा। ग प ध प नि ध सां प नि प सां, प ध प सां, सां रें सां नि, सां गं पं गं, रे सां, नि पनि ध सां नि, प नि ध सां नि, प ग, प गरे सा। ताने- १-सा ग प प ग रे नि सा, सा ग प प ध प ग रे नि सा, सा ग प प नि नि प प धप गरे नि सा, सा ग प प नि सां नि प ग प ग रे नि सा, सा ग प प नि सां गं रें सां प प ग प रे नि सा। २- ग ग प प ग ग रे सा, ग प नि प ग प ग ग रे सा, ग प नि सां नि प ग प ग ग रे सा, ग प नि सां रें सां पग पनि प ग ग रे सा। ३-सा ग ग, ग प प, पनि नि, नि सां सां, सा ग, ग प, पनि, नि सां, सां गंरें सां नि नि सां नि पग प, ग प ग रे सा। यह पूर्वी अङ्ग का राग है । इसमें ऋषभ-धैवत कोमल, मध्यम तीव्र तथा शेष स्वर शुद्ध लगते हैं। इसके अारोह में गांधार-धैवत वर्जित हैं। अतः जाति औडव-सम्पूर्ण है। वादी रिषभ-तथा संवादी पंचम है । 'रेप' की सङ्गति विशेष रूप से सुन्दर लगती है। गायन समय सन्ध्या काल है । आरोह:-सा रे म प नि सां तथा अवरोहः-सां नि ध प म ग रे सा है । मुख्याङ्गः-रे रेप, मधु प, म ग रे सा है। अलाप--- सा, नि सा, रे सा, रे रेप, में ग, रे ग, रेप, मध प, म प ध प, म ग, रेग, रेप, म ग, रे नि ध प, पनि सा, पनि सारे नि सा, नि रे मा, नि रे ग रे सा, रे में