पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/२९

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१२ सितार मालिका 'दा' या 'डा' बजाना- जब मिजराब से बाज के तार पर इस प्रकार प्रहार करें कि हाथ अपनी ओर आये तो उस ध्वनि को 'दा' या 'डा' कहते हैं। 'रा' या 'डा' बजाना-- जब बाज के तार पर मिजराब से इस प्रकार प्रहार करें कि हाथ बाहर की ओर जाये तो उस ध्वनि को 'रा' या 'ड़ा' कहते हैं। तार दबाने में अँगुलियों का प्रयोग- स्वर निकालने के लिये बाएँ हाथ की तर्जनी को परदे के ऊपर इस प्रकार रखो कि बाज का तार परदे को छूता रहे और अँगुली का मांसल भाग परदे से आगे न निकले । यदि आप ठीक परदे के ऊपर अँगुली रख कर तार दबायेंगे तो अँगुली का मांस अावाज को निकलने नहीं देगा। अतः अगुली इतनी ही परदे से पीछे रहनी चाहिये कि देखने में तो परदे पर ही रखी प्रतीत हो, परन्तु हो तनिक पीछे ही । साथ-साथ प्रारंभ से ही तर्जनी और मध्यमा दोनों को प्रयोग करने का अभ्यास करना चाहिये । जो लोग केवल तर्जनी का ही अभ्यास करते हैं वह द्रुत लय का काम नहीं कर पाते । मध्यमा का प्रयोग प्रारोही में ही किया जाता है। जैसे सम्पूर्ण आरोही बजाते समय 'सा' तर्जनी से और 'रे' मध्यमा से बजाइये। ( देखिये चित्र नं०४) इसी प्रकार 'गा' तर्जनी से और 'मा' मध्यमा से बजाइये । 'पा' तर्जनी से और 'धा' मध्यमा से बजाइये। अन्त में 'नि' तर्जनी से और 'सां मध्यमा से बजाइये । अवरोही बजाते समय 'सां' तो मध्यमा से बज ही रहा है और तर्जनी 'नि' पर है। अतःज्यों ही 'सां' बजाकर मध्यमा उठी तो तर्जनी ने स्वतः ही 'नि' बजा दिया। अब इसी तर्जनी के द्वारा समस्त अवरोही धा पा-मा-गा- रे - सा - बजा डालिये। दूसरा ढंग अँगुलियों के प्रयोग का यह है कि 'सा' को तर्जनी से बजाकर, शेष सम्पूर्ण आरोही अर्थात् रे गा मा पा धा नि सां को मध्यमा ही बजाइये। लौटते में 'सा' तो मध्यमा से बजेगा ही, नि - था - पा - मा - गा - रे - सा सम्पूर्ण अवरोही को तर्जनी से ही बजाइये। प्रारम्भ में इस प्रकार बजाने में कुछ अड़चन प्रतीत होगी, परन्तु अभ्यास हो जाने पर यह क्रम हाथ को तैयार करने में बहुत सहायता देगा। अब इसी आधार पर दो बातों को विशेष रूप से ध्यान में रखिये । तर्जनी बाज के तार से कभी भी नहीं उठाई जाती और जिस स्वर से अवरोही करनी हो उस पर सदैव मध्यमा ही काम में लानी चाहिये । मिज़राव जल्दी चलने का गुप्त रहस्य- सीधे हाथ को तैयार करने के लिये दो बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये । प्रथम यह कि जब हम 'डा' या 'डा' बजायें तो केवल अँगुली ही आगे-पीछे न चले, बल्कि