पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/३७

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चतुर्थ अध्याय सितार के बोल और गतों के घराने 'डा' और 'डा'--- जैसा कि हम पिछले अध्याय में बतला चुके हैं कि सितार में मुख्य बोल केवल दो ही होते हैं। एक को 'दा' या 'डा' जो मिनराब को अन्दर की ओर मारने से निकलता है और दूसरे को 'डा' या 'रा' कहते हैं, जो मिजराब को बाहर की ओर मारने पर निकलता है। 'दा' या 'डा' और 'रा' या 'डा' को पूरी एक-एक मात्रा में ही बजाया जाता है। 'दिर', 'दिड' या 'डिड़'-- जब 'दा' को आधी मात्रा में और 'रा' को भी आधी मात्रा में बजायें या यूँ कहो कि 'दाड़ा' को एक-एक मात्रा में न बजाकर केवल एक मात्रा में ही बजावें, तो इस ध्वनि को 'दिर' या 'दिइ' था 'डिड' कहते हैं। 'दार' या 'डाई- जब 'दा' या 'डा को एक मात्रा में बजायें और 'रा'या 'ड़ा' को आधी मात्रा में बजाये तो इस डेढ़ मात्रा के बोल को 'दाऽर' या 'डाऽड़' कहते हैं। इस प्रकार दो बार यदि 'दाऽर दाऽर' बजायें तो तीन मात्राएँ होंगी। 'द्रा'- जब 'दा' और 'रा' दोनों को चौथाई-चौथाई मात्रा में बजादें, अथवा यूँ कहो कि 'दिर' को ही आधी मात्रा में बजादें, तो इस ध्वनि को 'द्रा' कहते हैं। दो अँगुलियों में मिजराब पहिन कर द्रा बजाना कुछ लोग 'द्रा' बजाने के लिये तर्जनी और मध्यमा दोनों में मिजरा पहिन कर बाज के तार पर इस प्रकार प्रहार करते हैं कि पहिले मध्यमा की मिजराब 'बाज' पर पड़े और तुरन्त ही ( उसी आपात में ) तर्जनी की भी मिजराब 'बाज' पर पड़े। इसे बजाते समय इस बात का ध्यान रखते हैं कि दोनों मिजराबें एक साथ 'बाज' पर न पड़ने के स्थान पर तनिक आगे-पीछे पड़ें। यदि दोनों मिजराबें एक साथ ही पड़ेंगी, तो ध्वनि 'द्रा' की न निकल कर केवल 'दा' की ही सुनाई देगी। इस प्रकार का 'द्रा' जब द्रुत लय के झाले में प्रयोग किया जाता है तो अद्भुत प्रतीत होता है।