पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/३९

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सितार मालिका गतियों के घराने-- सितार को सबसे अधिक प्रिय बनाने का श्रेय स्व० अमृतसैन जी को है। उन्होंने जिस प्रकार की गतियाँ इसमें बनायीं, उन बन्दिशों को सैन-वंशियों की गतियाँ कहा गया। यह गतियाँ विलम्बित, मध्य और द्रुत तीनों ही लयकारियों में बाँधी गईं। इनके अतिरिक्त स्व. मसीतखां साहब ने विलम्बित गते बनाने का एक अन्य सरल ढङ्ग निकाला । वह प्रत्येक राग में प्रायः अपनी ही गते बजाया करते थे। उनकी गते सुन्दर होते हुए भी सैन वंशीय विलम्बित गतों से सरल थीं। अतएव लोगों ने इनकी गतियों को खूब अपनाया। यह गतियां मसीत खां साहब के नाम पर ही 'मसीतखानी' कहलाई। इनका प्रचार इतना अधिक हो गया कि प्रायः प्रत्येक विलम्बित गति को अब भी कुछ लोग 'मसीतखानी' कहते हैं। जिस प्रकार विलम्बित गतियों का ढङ्ग निकालने वाले मसीत खां साहब थे, उसी भांति सैन वंशीय द्रुत गतों को सरल रूप देने का श्रेय स्व० रजाहुसैन खां साहब को है । अतः आज भी प्रायः प्रत्येक द्रुत गति को 'रजाखानी' कहने का प्रचार है। इस प्रकार गतियों के निर्माण में यह तीन घराने प्रसिद्ध हुए । सैनवंशीय गतियों को विशेषताएं- इस वंश की गतियों को विशेषताएं मुख्य रूप से दो रहीं। प्रथम यह कि यह प्रायः एक ही आवृत्ति की न होकर, दो-दो या और अधिक आवृत्तियों में समाप्त होती थीं। और द्वितीय इनमें सम स्थान को छोड़कर बीच से तालों का स्थान हूँढ़ना कठिन था। कभी- कभी तो सम को भो ऐसे बेढब स्थान पर रखते थे कि तबलिये सरलता से 'सम' ही न खोज सकें। इन गतियों की चालों अथवा बन्दिशों में, तान, तोड़े व तीयों के प्रारम्भ करने व उनकी समाप्ति पर मूल गति में मिलने के स्थान, प्रायः प्रत्येक तोड़े के लिये भिन्न-भिन्न होते थे। अतः सितार वादक और तबलिये दोनों के लिये ही यह एक कठिन काम था। सुनने में यदि तबलिया ताल भूल जाये, और गति की चाल को देखकर ही मिलने का प्रयत्न करे तो ६० प्रतिशत धोखा ही होगा। संक्षेप में यही समझना चाहिये कि यदि सितार-वादक, तबला-वादक को धोखा देना चाहें तो सैनवंशीय गतियां इस काम के लिये ६० प्रतिशत सफल मिलेंगी । परन्तु सितार-वादकों को कंठस्थ करने में कठिन होने के कारण यह गतियां प्रायः लुप्त होती चली गईं और इनका स्थान मसीतखानी गतियां लेती गई। मसीतखानी गतियों की विशेषताएं- इन गतियों में सोलह मात्रा के दो बराबर भाग करके, आठ-आठ मात्रा के दो समान बोलों को मिलाकर एक आवृत्ति पूरी की गई। अतः सैनवंशीय गतियों में जहां एक श्रावृत्ति से भी अधिक आवृत्ति की गतियां थीं, वहां मसीतखानी में केवल आठ मात्राओं को ही दोबार बजाकर सोलह मात्रायें पूरी की गई। इनका उठाव ८० प्रतिशत