पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४०

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चतुर्थ अध्याय बारहवीं मात्रा से ही रखा। लगभग २० प्रतिशत यह गतियां सम और खाली से भी प्रारम्भ होती हुई दिखाई देती हैं। इन गतियों में बोल भी 'दा' ‘ड़ा' और 'दिड' यही अधिक प्रयोग में आते हैं। आठ मात्रा का टुकड़ा इन गतियों का 'दिड दा दिड दा ड़ा दा दा डा' है, जिसे दो बार बजाकर तीनताल की एक आवृत्ति पूरी की जाती है। रज़ाखानी गतियों की विशेषताएं-- इन गतियों की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि इनमें प्रयोग किये जाने वाले बोल 'दा' 'दिर' 'दार' और 'द्रा' आदि रहे। परिणाम स्वरूप गति बहुत द्रुत होगई। इस प्रकार यह समस्त गतियां द्रुतलय की कहलाई। सैनवंशीय द्रुतलय की गतियां भी दो-दो अथवा अधिक आवृत्तियों में बजती सुनाई देती हैं। परन्तु रजाखानी गतियां प्रायः एक ही आवृत्ति में समाप्त हो जाती हैं। रजाखानी गतियों में तबला-वादक को 'सम' के अतिरिक्त तालों के अन्य स्थान भी स्पष्ट दिखाई देते रहते हैं, परन्तु सैनियों की गतियों में यह स्थान भी प्रायः धोखे देने वाले ही होते हैं। इन्हीं कारणों से तंत्रकार भी इन्हें छोड़ते गये और रजाखानी गतियां ही अपनाने लगे। ।