पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४१

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पञ्चम अध्याय सितार में प्रयुक्त होने वाले अन्य पारिभाषिक शब्द सितार में क्या और कैसे बजायें, इसे प्रारम्भ करने से पूर्व, इससे सम्बन्धित जो अन्य पारिभाषिक शब्द हैं उनको समझ लेना भी आवश्यक है। लाग-डाट- जब बायें हाथ की तर्जनी को किसी भी एक स्वर से अन्य दूर के स्वर तक, तार पर घसीट कर ले जायें, तो जिस स्वर से चले थे, उसे 'लाग' का स्वर और जिस पर 'डटे' अर्थात् ठहरे, उसे 'डाट' का स्वर कहते हैं। आज के युग में 'लाग-डाट' के अर्थ भिन्न-भिन्न हैं। परन्तु इनके अर्थ चाहे जितने हो जायें, श्राशय एक ही रहेगा कि आरोही या अवरोही में, दो स्वरों को 'घसीट' कर अर्थात् तार पर अँगुली को 'रपटा कर बजाने की क्रिया का नाम ही 'लाग-डाट' है। 'लाग-डाट' द्वारा श्रोताओं में सितारिये बहुत लम्बी मींड का भ्रम उत्पन्न कर देते हैं। मन्द्र सप्तक के पंचम से मध्य सप्तक के गान्धार तक की मींड का भ्रम उत्पन्न करना- मान लीजिये आप मन्द्र-पञ्चम से मध्य सप्तक के गान्धार तक की मींड का भ्रम उत्पन्न करना चाहते हैं। अब यह तो सत्य ही है कि इतनी लम्बी मींड सितार में संभव नहीं है। परन्तु सितारिये अपनी कुशलता से यह भ्रम अवश्य उत्पन्न कर देते हैं। इसे उत्पन्न करने के लिये पञ्चम स्वर पर मिजराब लगाकर, एकदम अँगुली को रपटा कर अर्थात् घसीट कर 'गा' स्वर पर ले जाइये । 'गा' पर पहुँच कर दूसरी मिजराब मत लगाइये। मिजराब का प्रहार केवल एक बार ही 'पा' पर होगा। यह क्रिया 'पा' पर मिजराब लगाते ही एकदम शीघ्र से शीघ्र कर देनी चाहिये। इसे हम 'पागा' न कह कर 'पगा' या 'पणा' कहेंगे। अर्थात् 'प्गा' में 'पा' पर मिजराब लगाते ही तुरन्त अँगुली 'गा' पर होगी। इसी में, यदि एकदम 'गा' के परदे पर न जाकर 'रे' पर इस भांति जायें, कि अँगुली 'रे' पर पहुँचते ही गा की अनुलोम मीड जाये, तो अधिक सुन्दर रूप बन जायेगा । परन्तु इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि कहीं 'रे' के परदे पर आने पर