पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४३

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२२ सितार मालिका मींड अनेक प्रकार की होती हैं। परन्तु विद्यार्थी को पहले केवल एक ही स्वर की मींड खींचने का अभ्यास करना चाहिये। जब एक स्वर की मींड शुद्ध खिंचने लगे, तभी दो-दो स्वरों की मीड का अभ्यास करना चाहिये । अर्थात् जिस स्वर पर मिजराब लगे उसके अतिरिक्त, उसी प्रहार में, दो अन्य स्वर और खिंच जाने चाहिये। जैसे नि सा रे। यहाँ 'नि' पर मिजराब लगा कर, उसी परदे पर खींच कर 'सा' और.'रे' निकाला जायेगा। जब तीन-तीन स्वरों की मींड का अभ्यास हो जाये तभी चार-चार स्वरों की मींड का अभ्यास करना चाहिये । इन अभ्यासों में एक बात का विशेष ध्यान रखना चाहिये कि जब तक एक मींड खूब साफ न खिंचने लगे, तब तक दूसरी का अभ्यास प्रारम्भ नहीं करना चाहिये। साथ-साथ जब अनुलोम अर्थात् आरोही की मौंड का अभ्यास हो जाये तब ही विलोम अर्थात् अवरोही की मींड का अभ्यास करना चाहिये ! इसके बाद एक ही प्रहार में आरोही-अवरोही दोनों को मिलाने का अभ्यास करना चाहिये । जैसे नि सा रे सा। यहां केवल नि पर ही मिजराब लगाकर, उसी परदे पर सारेसा और बजाना है। क्रन्तन-- एक ही मिजराब में दो-तीन अथवा चार खड़े स्वर अर्थात् बिना मींड के, केवल अँगुलियों द्वारा स्वर निकालने की क्रिया को क्रन्तन कहते हैं। क्रन्तन में स्वरों की संख्या चार-स्वरों से भी अधिक हो सकती है। ज़मज़मा-- जब आप किसी भी स्वर पर तर्जनी द्वारा 'बाज' के तार को दबाकर, उससे अगले परदे पर मध्यमा अँगुली को जोर से मारें तो जिस स्वर पर मध्यमा पड़ेगी, उसी स्वर की एक हल्की सी ध्वनि सुनाई देगी। ध्यान रखिये कि दूसरे स्वर की ध्वनि मिजराव मारकर उत्पन्न नहीं करनी है , वरन् उसे केवल मध्यमा के प्रहार से ही उत्पन्न करना है। जब इसी क्रिया को एक बार अथवा अधिक बार किया जाता है तो इसे 'जमजमा' कहते हैं। मुर्की- जब एक ही मिजराब में बिना मीड के तीन खड़े स्वर बजाये जायें तो उस क्रिया को मुर्की कहते हैं। जैसे रे सा नि। इसमें 'रे' पर मिजराब लगेगी। तर्जनी 'सा' के और मध्यमा 'रे के परदे पर होगी। रे' पर मिजराब लगते ही मध्यमा को तुरन्त तार पर से ऊपर उठाना पड़ेगा। देखने में तो मध्यमा अँगुली तार पर से ऊपर