पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४५

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सितार मालिका जब लगता है । तुरन्त ही 'पा' के परदे से, उसी लय में धनिसां की मींड खींच दी जाती है। यह सारे काम, घसीट, ज़मज़मा और मींड एक ही लय में हो जाने के कारण, और अन्तिम तीन स्वर धनिसा' की मींड सुनाई देने के कारण, श्रोताओं को यह भ्रम उत्पन्न हो जाता है कि संपूर्ण आरोही एक ही मिज़राब में मींड द्वारा निकाली गई है। 'गम-गम' की मींड में 'मग' न सुनाई देने की युक्ति--- स्वरों की, केवल आरोही को मींड ली जाती है तो अवरोही की मीड की ध्वनि भी धीमी-धीमी सुनाई देती है। उदाहरण के लिये यदि आपको दो या तीन बार गम, गम की मींड निकालनी है, तो आप गांधार के परदे पर, 'बाज' के तार को इतना खींचेंगे कि मध्यम स्वर बोलने लगे। परन्तु एक बार इस क्रिया को करने के बाद जब श्राप 'ग' पर पुनः 'म' की मींड खीचने के लिये, खिंचे हुए तार को ढीला करके 'ग' पर आयेंगे, तो आपको एक हल्की सी ध्वनि 'मग' को भी सुनाई देगी। अब यदि आप यह चाहें कि यह अवरोही ही 'मग वाली मींड की ध्वनि न सुनाई देकर, केवल 'गम' 'गम' ही सुनाई दे, तो बिना इसके रहस्य को समझे हुए, आप इसे नहीं कर सकेंगे। इस क्रिया को करने के लिए 'ग' पर 'म' की मींड़ खींचकर, ज्यों ही मोड़ पूरी हो, अर्थात् आपके खिंचे हुए तार से 'म' की ध्वनि सुनाई देने लगे, तो आप तुरन्त 'बाज' के तार पर मिजराब रख दीजिए, फलस्वरूप 'ग' से 'म' की मींड़ ही सुनाई देगी और फिर 'बाज' के तार से ध्वनि निकलनी बन्द हो जायेगी। जब तक 'बाज' के तार पर मिजराब रखी रहेगी, और ध्वनि बंद रहेगी, उतनी देर में आप तार ढीला करके तुरन्त 'ग' के परदे पर बाजाइये । इस स्थिति में अर्थात 'ग' पर आ जाने के उपरान्त, मिजराब को 'बाज' के तार से, तार को नीचे की ओर दबाते हुए हटाइये । आप देखेंगे कि इस प्रकार मिजराब के हटने से ही तार उसी प्रकार ध्वनि देगा, मानों आपने तार पर आधात ही किया हो। इस प्रकार के आघात से जो ध्वनि 'ग' को सुनाई देगी, उसी के आधार पर आप पुनः 'म' की मींड खींच दोजिये । 'म' स्वर सुनाई देते ही, फिर मिजराब को तार पर रख कर ध्वनि बंद कर दीजिये। ध्वनि बद होने पर पुनः तार को ढीला करके 'ग' पर आजाइये। इस प्रकार जितनी बार आप चाहें 'गम' 'गम' की मींड निकाल सकेंगे। अब 'म' पर पहुँच कर, पुनः 'ग' पर, 'गम' की मींड खींचने के लिये आने में, तार पर मिजराब रख कर उसकी ध्वनि को बद कर देने के कारण, 'मग' बिल्कुल ही सुनाई नहीं देगा। इस क्रिया को आप जितनी बार, जिस स्वर पर करना चाहें कर सकते हैं। ठुमरी वादन में यह क्रिया विशेष रूप से की जाती है। झाले बनाना- 'बाज' और 'चिकारी के तारों पर किसी भी एक क्रम से प्रहार करते रहने की क्रिया को झाला कहते हैं। जितने प्रकार के क्रम इन ग्रहारों के आप निर्माण कर सकें, उतने ही प्रकार के झालों का निर्माण कर सकेंगे।