पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/४७

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२६ सितार मालिका स्वर पर आपकी अँगुली है वह स्वर स्वतः ही कंपित होने लगेगा। वैसे यह भी एक प्रकार की गमक ही हुई; परन्तु यह अधिक कर्ण मधुर नहीं लगती। इसके स्थान पर यदि आप बाएं हाथ को कंपित न करके अँगुली से तार को धीरे-धीरे परदे पर ही दाब कर आगे-पीछे की ओर ले जायें, अर्थात् जिस प्रकार अँगुली से किसी चीज को मसलते हैं, उसी प्रकार तार को भी परदे पर आगे-पीछे की ओर ले जाते हुए मसलने जैसी क्रिया करें तो आपको स्वर झूलता हुआ सा सुनाई देगा। इस प्रकार की गमक ही सितार में अधिक मधुर लगती है। यही क्रिया सिद्ध होने पर शीघ्रता से किसी भी स्वर पर एक बार, दो बार, तीन बार अथवा चाहे जितनी बार की जा सकती है। 'सककस' का एक तैयार स्वरूप-- इस झाले के दो भाग कर लीजिये। पहिला 'साका' और दूसरा 'कासा'। अब 'सा' बाज के तार पर बजाकर, अँगुली को तूंवे की ओर ले जाते हुए अर्धगोलाकार रूप में अपनी ओर ले आइये। जब अपनी ओर अँगुली आ गई तो चिकारी पर 'डा' की भांति इस प्रकार प्रहार करिये कि आपकी अँगुली खूटियों की ओर चली जाये। नीचे के चित्र में अँगुली चलने की दिशा को अंकित किया गया है:- SRIASIANEL -डांड (चिकारी) (बाज) अब इसी चक्र को उल्टा घुमाने से 'का सा' बजने लगेगा। पहिले धीरे-धीरे और बाद को द्रुतलय में इसका अभ्यास करना चाहिये। तैयार होने पर यह झाला बड़ा तैयार जाता है और बड़ा उत्तम सुनाई देता है।