पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/५०

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छठा अध्याय इसी प्रकार 'लाग डाट', 'जमजमा' 'मुर्की' और 'गिटकड़ी' आदि की सहायता से बीच-बीच में भराव का ध्यान रखते हुए पहिले मन्द्र और फिर 'अतिमन्द्र' तक काम दिखाते रहिये । इस काम में राग, जाति, वादी और पकड़ को नहीं भूलना का चाहिये। मोड़-- जब आप स्वर गुञ्जन की क्रिया को कर चुके तो साथ में कहीं कहीं मौड़ का प्रयोग करते चलिये । एक मिजराब में चार-चार स्वरों की मींड का अभ्यास होना चाहिये । मीड का अभ्यास करते समय सितार में तीन प्रकार की मींड का अभ्यास करना चाहिये। इन्हें हम शास्त्रीय नाम न देकर, उनकी विशेषताओं के आधार पर उनके नाम क्रम से 'सारंगी- टाइप 'गिटार-टाइप' और 'वायलिन टाइप' की मीडें कहेंगे। लीजिए इन्हें क्रम से समझ लीजिए। सारंगी टाइप को मींड- जब एक ही आघात में दो अथवा अधिक स्वरों को एक परदे पर खींच कर निकालें तो यह मींड़ 'सारङ्गी के ढंग की मींड' कहलायेगी। जैसे एक ही मिजराब में धा के परदे पर 'धनिसा' या 'धनिसारे' आदि बजाना । यही क्रम अवरोही में होगा जैसे 'गारेसा' या 'गारेसानि । 'सा' या 'नि' के परदे पर बजाने को सारंगी-टाइप की मींड कहेंगे । इस प्रकार की मींड का प्रत्येक परदे पर खूब अभ्यास होना चाहिये। इसी टाइप में चार-चार स्वर घुमा फिरा कर किसी भी प्रकार बजाये जा सकते हैं। जैसे 'नि के परदे पर एक ही मिजराब में 'निसारेसा' या 'रेसानिसा' बजाना । इसी क्रम से प्रत्येक परदे पर संपूर्ण आरोही व अवरोही में अभ्यास करना चाहिये जैसे 'नि' के परदे पर निसारेसा' । 'सा के परदे पर 'सारेगरे । 'रे' के परदे पर 'रेगमग' आदि। इस बात की ओर विशेष ध्यान रखना चाहिये कि प्रत्येक स्वर पर बराबर समय लगना चाहिये और जो भी स्वर खींचा जाये, वह बहुत ही स्पष्ट हो । जब तक किसी भी एक परदे पर शुद्ध मीड का अभ्यास न हो जाये, आगे बढ़ने का प्रयत्न नहीं करना चाहिये । गिटार टाइप की मींड़-- इस क्रम में दो-दो स्वर लेते हुए चलते हैं। जैसे निसा, सारे, रेग आदि । यह समस्त स्वर नि के परदे पर ही बनेंगे। मिजराब 'निसा' में 'नि' पर 'सारे' में 'सा' पर और रेगा' में 'रे पर लगेगी । यही क्रम अवरोही में भी 'गरे, रेसा, सानि' का रखते हुए, 'गारे' में 'गा' पर 'रेसा' बजाते समय 'रे' पर और 'सानि' बजाते हुए 'सा' पर मिजराबें पड़ेगी। वैसे बनेंगे सभी स्वर नि के परदे पर तार को खींच कर । इसी क्रम को केवल एक ही मिजराब के आघात में भी किया जा सकता है। इसका भी क्रम से प्रत्येक परदे पर, राग में लगने वाले स्वरों के आधार पर अभ्यास करना चाहिये । वायलिन टाइप की मींड- जब किसी भी एक स्वर से दूसरे स्वर तक एक दम इस प्रकार तार को खींचकर जायें कि बीच के स्वर बिल्कुल ही सुनाई न दें, तो इसे वॉयलिन के ढंग की मींड कहते हैं।