पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/५८

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छठा अध्याय ३७ झाला- नोम् तोम् के अलाप में ही जब एक प्रकार की मिज़राब कई बार लगातार बजती रहती है, तो कुछ कुछ झाले का रूप बन जाता है। वैसे अाप भराव' की क्रिया के द्वारा श्रोताओं को चिकारी भी बराबर सुनाते रह सकते हैं। परन्तु झाले में चिकारी का महत्व बढ़ जाता है। जिन झालों को इस पुस्तक में बनाना (पिछले अध्याय में) बतलाया गया है, आप उन सभी को अलाप में प्रयुक्त कर सकते हैं। एक मीडयुक्त झाला- झाले में प्रायः खड़े स्वरों का प्रयोग किया जाता है। परन्तु यदि आपने पीछे दिये हुए क्रम से साकाकासा' को उसी प्रकार तैयार करलिया, जैसा कि पञ्चम अध्याय में दिया गया है तो आप जब भी 'साकाकासा' में प्रथम 'सा' पर मिज़राब लगायें तभी बाएँ हाथ से मीड भी खींच दीजिये। जितनी देर में आपका हाथ 'काका' बजाये, उतनी देर में आप मींड खींच दीजिये। हो सकता है कि आपको प्रारम्भ में कुछ अड्चन मालूम दे, परन्तु थोड़े परिश्रम से यह क्रिया सिद्ध हो जायेगी। इस प्रकार आपके झाले में एक विशेष श्रानन्द आयेगा। देर तक अलाप कैसे करें- अलाप को देर तक स्थिर रखने के लिये दो बातों की ओर विशेष ध्यान देना चाहिये । नं०१-चिकारी पर 'भराव' की मिज़राब का आघात शीघ्र-शीघ्र न होने लगे। जितने काल तक विलम्ब से श्राप चिकारी पर आघात करेंगे, उतने ही काल तक श्रोताओं को यही भान होता रहेगा कि अभी सितार प्रारम्भ ही हुआ है। परन्तु इसके विपरीत आपने चिकारी पर जल्दी-जल्दी मिजराब लगाकर उसे झाले का रूप दे दिया तो आप स्वयं ही यह अनुभव करेंगे कि न मालूम आप कितनी देर से सितार बजा रहे हैं। दूसरे शब्दों में आप इसे यूँ समझिये कि विलम्बित के काम में द्रुत का काम रखने का प्रयत्न नहीं होना चाहिये। नं०२-जो भी स्वर आप राग में प्रयुक्त कर रहे हैं उन्हें श्रोताओं के सम्मुख एकदम मत रख दीजिये। पहिले राग में लगने वाले केवल दो-तीन स्वर ही लीजिये। आप उनकी सहायता से जितने भी भिन्न मेल अर्थात् उनके मिश्रण बना सकें, बनाते रहिये । एक बात का और ध्यान रखिये कि जो भी स्वरों का मेल आप एक बार बजादें वह पुनः उसी रूप में नहीं आना चाहिये। उसमें कुछ न कुछ परिवर्तन होना अति आवश्यक है। जब आप उन तीन स्वरों के नये मेल बनाने में अपने को असमर्थ पायें, तो एक नया स्वर, जो उस राग में लगता हो, और जोड़ लीजिये। अब इन चार स्वरों की