पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/५९

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सितार मालिका सहायता से फिर नये-नये मेल बनाकर सुनाइये । और जब आप चारों स्वरों को भी मिलाकर नवीनता उत्पन्न न कर सकें तब एक स्वर और बढ़ा लीजिये। आशय यह है कि श्रोता आपके वादन के प्रारम्भ में ही इस बात को पूर्ण रूप से न समझलें कि आप अमुक स्वर को अमुक प्रकार ही लगायेंगे। वह अापके स्वर मेलों को सुनने के लिये उत्सुक बने रहने चाहिये। इस प्रकार जितनी अधिक देर में आप अपने राग के समस्त स्वरों को श्रोताओं के सम्मुख रखने में समर्थ होंगे, उतने ही अधिक विद्वान आप समझे जायेंगे। किन्तु इन सब बातों को करते हुए राग की जाति, वादी, सम्बादी और स्वरूप नहीं बिगड़ने देना चाहिये; यही अलाप का मुख्य रहस्य है।