पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

सितार मालिका इस प्रकार जब श्राप निसारेगा के नवीन नवीन मेल बनाने में अपने को असमर्थ पायें तब एक स्वर, चाहे आगे का मध्यम या पीछे का धैवत और जोड़ दीजिये । अब ऊपर के स्वरसमुदायों को उस नवीन स्वर से मिला कर पुनः नवीन-नवीन मेल बनाइये । जैसे:-निधनि, धनि, सानि, निरेगा, गारेसानि, निधनिध, नि, धनि, रेनि, रेगारेनि, निगा, रेगा, सानिसारेगा, ध, निरेगा, धनिध, निसानि, सारेसा, रेगरे, गा, धसा, निरे, सागा, धनि, धसानिरेगा, रेरेगारे, धनिरेसा । यहां हमने निषाद (संवादी) का महत्व दिखा दिया है। इस प्रकार अब आप एक स्वर मन्द्र का पञ्चम अथवा मध्य सप्तक का तीन मध्यम, अथवा दोनों को लेकर और मेल मिलाइये । जैसे, निरेगा, रेगा, रेमंऽग, धनि, धसा, निरे, रेमऽग, गरेमऽग, सारेसागारेमऽग, मंग, रेगामऽगा, गारेसानि, ध, प, पधनिसा, धनिरेसा, धनिरेगारे, धनिरे धनिसा । नि, रे, निसारे, सारेगा, रेगर्म, ग, गरेमंगा, गारेगामंगा. रे, धनि, धनिधप, पनि, धसानिरे, सागा, रेम, गारे, नि, धनिरेसा । इस प्रकार आप चाहे जिस प्रकार 'गा' के वादित्व को ध्यान में रख कर इच्छानुसार मेल मिलाते रहिये । इसके बाद, जब आप इन स्वरों से नवीन मेल बनाने में स्वयं को असमर्थ पायें तो एक स्वर आगे की ओर अर्थात् पञ्चम को और बढ़ा लीजिये ! अब इसके साथ भी पीछे के मेलों को मिलाकर पुनः नवीन नवीन मेल बना डालिये। जैसेः-निरेगा, रेगा, रेगामप मपगमप, रेगारेसानिरेगमप, निरे, रेग, गर्म, मैप, निरंगा, रेगामा, गामापा, गामा,गापामप- गामप, गागारेसानि, धनिसारेगा, रेमानि, धनिधप, प, मप, गर्मप, रेनि, धनिरे, धनिसा। अब 'धा' को भी मिला लीजिये । जैसे:-निरेग, मप, मपमधप, पथप, धपधर्मप, मंपधपधर्मप, मपमधपधर्मप, ममप, धधप, धधर्मपधधप, धपधपमधपमप, गर्मपधपमंगरे, गर्मपरेसा, निरेगमपरे, गारे, मंपरे, गारे, धनि, रेसा । आप देखेंगे कि हमने विशेष रूप से केवल 'मपध' का ही प्रयोग किया है। आप इन्हीं में 'गा' और 'रे आदि लगाकर और भी नवीन स्वर समुदाय बना सकते हैं। अब इसी आधार पर इन्हीं में एक स्वर निषाद और मिला लीजिये । अब इनके जो मेल बनायें, उनमें से कुछ यह भी होंगे ही । जैसे:-निरेगा, रेगा, रेगामप, मपध, मपनि, धनि, धनिधप मधपनि, निनिधनिधप, मधप, रेगरेसानि, धनि, रेमानिता, गरेगरेनिमा, गर्मपधनिनिधपमेधपमंगरे, गामपरेगा, मपधर्मप, पधनिपध, पधनिनिधप, मपधधपम, गर्म- पपमंग, रेगरेमानिसा, धनिरे, धनिमा, निरेगा । यह सारे स्वर समुदाय तुरन्त ही बनाकर लिखे जा रहे हैं, विद्यार्थियों को इन्हें रटने की बिल्कुल आवश्यकता नहीं है। यहां यह देखने का प्रयत्न करना चाहिये कि जो भी स्वर राग में प्रयुक्त हो रहे हैं, उन स्वरों को चाहे जितनी बार, चाहे जिस प्रकार उलट-पलट कर,वादी और पकड़ को ध्यान में रख कर रखते चलिये; बस यही अापका अलाप होगया। इस प्रकार जब तक आपकी इच्छा हो, नवीन नवीन रचनाएँ श्रोताओं के सन्मुख रखते रहिये । अब आप तार षड्ज को भी साथ में मिला लीजिये । अपने स्वरसमुदायों