पृष्ठ:सितार-मालिका.pdf/६४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

अाठवाँ अध्याय अलाप के लिये कुछ अन्य राग और उनकी तानें बनाने का ढंग जिस प्रकार आपने पिछले अध्याय में राग 'कल्याण' के अलाप का अध्ययन किया है उसी प्रकार अब कुछ अन्य राग के अलापों का भी स्वरूप देखिये । ध्यान रखिये कि एक-एक स्वर को बढ़ा कर भिन्न-भिन्न मेल बनाये जायेंगे। आप इन्हें रटिये मत, बल्कि समझ कर स्वयं बनाने का प्रयत्न करियेगा। राग भैरवी-- यह राग भैरवी ठाठ से उत्पन्न होता है। सब स्वर कोमल लगते हैं। जाति संपूर्ण है । वादी मध्यम व संवादी षड्ज है। गायन समय दिन का प्रथम प्रहर है। मुख्यांग अथवा पकड़ 'म ग रे स, ध नि स' है। अब आप केवल चार स्वर 'सारेगामा' में अलाप का स्वरूप देखिये:-सा रे गम, ग रे गम, रे गम, रे ग रे सा रे ग म, गम गरे स, चूंकि ध नि सा भी पकड़ स्वर हैं अतः अब इन्हें भी ले लेते हैं। जैसेः-सरे गम, गरे, गरे सा, नि सा, ध नि सा, ध नि सा रे सा, नि सा रे ग रे सा, गम गरे, ग रे सा, म रे ग रे ग रे सा, नि, सा रे ग म, ग रे ग, ध नि सा. ध नि सा रेनि सा, ध नि सारे सा, ग रे सा, म ग रे सा, ५ सा, नि रे, सा ग, रेम, धनि सा, नि सा रे, सा रे ग, रे ग म, गरे ग म, गरे सा। इसी प्रकार आप चाहे जितने नवीन मेल बनाते रहिये । यह सारे ही मेल एक-एक स्वर के हैं। यदि आप चाहें तो इन्हीं में किसी भी स्वर को दो-दो या तीन-तीन बार, चाहे जिस प्रकार रख कर अनेक नवीन मेल और बना सकते हैं । जैसे:-सा रे, रे, ग, ग म, म ग रे ग रे सा नि सा, ध नि नि ध सा सा, धरे रे धरे नि सा, गु म म, रे ग ग, सा रे रे, नि सा सा, म मरे, ग ग सा, रे नि नि सा सा सा आदि। अब इन्हीं में मन्द्र और मध्य सप्तक का पञ्चम और मिला दिया। देखिये अब, कितने अधिक मेल बन सकते हैं। जैसेः-नि, सा रे ग, म, ग म प, म प, ग म प, रे गम, रे ग रे ग प, म, म प प, ग म म, रे ग ग, सा रे रे, नि सा सा। नि सा धनि सा, ध नि रे सा, नि सा रे सा नि ध प, पधनि प, पथ प, पृध नि सा नि ध प, धरे सा रे नि सा नि ध प, ध नि नि , प, ध नि सा सा नि ध नि सा रे रे सा नि,